________________
१६. मूल-नन्द शरदिन्दु विलोकी, शहर-सिन्धु उलसाणो ।
जन- कल्लोल बोल-गर्जारव, खमाखमा मिष माणो ।। १७. गल-आभूषण सबल विराजै, जलधि - रयण प्रकटाणा ।
उज्ज्वल फेन वसन - व्यपदेशे, नैन बैन विकसाणा ।। १८. सातम माघ- महोत्सव मेळो भंड्यो अति मंडाण ।
नव दीक्षा निज कर संघाधिप, पचखाई तिण टाणै । । १६. बिंयासी बीदासर मांही, पावस री छवि छाजै ।
छोगां माता पा सुखसाता, सद्गुरु सेवा साझै । । २०. कार्तिक मासे शिव अभिलाषे, दीक्षा दस शिवगामी । मिगसर मासे शहर लाडनूं, समवसऱ्या गणस्वामी । ।
"म्हांरै गुरुवर रो मुखड़ो है खिलतो फूल गुलाब-सो, मुखड़ै री छवि मनहार, म्हांरै गुरुवर रो, मुखड़ो शशांक सौम्याकार, म्हांरै गुरुवर रो । मुखड़ो अमन्द अविकार, म्हांरै गुरुवर रो... ।।
२१. श्रमण-संपदा संगे सोहे, श्रावक - छक हकदार । म्हांरै ... जय-जयय-ध्वनि-ध्वनिताम्बर - धरणी, करिणीश्वर - संचार ।। म्हांरै... २२. मंजु मनोहर मोहन मूर्ति, स्फूर्ती दिव्य दिदार ।
पूंजीभूत पुण्य मनु पळकै, भळकै ललित लिलाड़ । । २३. शहर लाडणूं आज सुरंगो पूज्य पदाब्ज-प्रसार ।
अंबर ज्यू अंबरमणि उदये, वन मधुमास मझार ।। २४. गुरु- वदनारविंद पर झूमै, मुझ मन अलि अनुहार । अनिमिष-नयन निहारै सोत्सुक, सन्मुख बारंबार ।। सोरठा
२५. पूछें माता पास, मैं अति आमोदित हृदय । अम्बा बिन आयास, कुण यूं अंगज - हित करै ।। २६. मां! ओ तन सुकुमार, चरण-कमल कोमल अतुल । पय अलवाण विहार, परम पूज्य क्यूं कर करे ?
१. लय : बायां गुलावशाही केवड़ा
उ.३, ढा.३ / १८.६