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२७. जम्पै जननी जात! पूज्य भाग्यशाली प्रवर।
पग-पग पर प्रख्यात, पुण्यवान रै नौ निधि।। २८. मुझ बचपन रो आज, मो मन में उपहास है।
सुमरत आवै लाज, कहतां दिल काठो हुवै।। २६. मैं पूछ्यो ए मां! आं पूजी म्हाराज रै।
चेहरै री आभा, पळपळाट पळ-पळ करै।। ३०. बोलै मां बेटा! के बातां आंरी करां।
पुनवानी के ठा, कठै किती संचित करी।। ३१. कुण होसी पाछै, आं पूजी म्हाराज रै ?
उत्सुकता आ छै, मनै बता दै मावड़ी! ३२. बोली तड़ाक दे'र, लाल आंख कर मां मनै।
खबरदार है फेर, इसी बात कबही करी।। ३३. तपो दिवाळी कोड़, आपां रा जै पूज्यजी।
मेटो खलता-खोड़, सारां री शासणपती।। ३४. मां! ए मां! म्हाराज, लागै घणां सुहावणां।
देखू बलि-बलि भाज, तो पिण मन तिरपत नहीं।। ३५. थारो भाग विशाल, हळूकर्मी है लाल! तू।
खिण में हुवै निहाल, जब झांकै सुनिजर सुगुरु ।। ३६. भणूं चरण में बैठ, छोटो-सो चेलो बणूं।
करूं स्व जीवन भेंट, मां! मम अंतर-भावना।। ३७. कठै इस्या तकदीर? बोली मां रे बावळा! ___ बड़भागी बड़वीर, पावै पूज्य-उपासना।।
'म्हारै गुरुवर रो मुखड़ो है खिलतो फूल गुलाब-सो।
३८. सारी बातां सहज बिनोदे, प्रश्न पडुत्तर सार।
पिण कुण जाणी इण महिनां में, बण ज्यासी साकार।। ३६. तिण ही वासर चंपक मुनिवर, पूछ सहज प्रकार।
तुलसी! तूं दीक्षा लेसी के? मुझ मन हर्ष अपार ।।
१. लय : बायो गुलाबशाही केवड़ो
१६० / कालूयशोविलास-१