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६. हाथां पैरां में ब्याऊड़ी फाटै ज्यूं पर्वत-खोगाळां।
कालूंठो चेहरो पड़ ज्यावै, जळ ज्यावै चमड़ी सीयाळां ।। बेळू-टीलां री बा धरती, पग धरत पराया-सा पड़सी,
झरती आंख्यां झरती नाका, कर-शाखा करड़ी कंकड़-सी।। १०. जद शिमला कानीं बरफ पड़े, थळियां में ठंडी ब्हाळ चलै,
ऊनी कपड़ां स्यूं आवृत तन नै भी बा आरोपार खलै। ठंडो जल पड्यो गड़ो-सो है, पीतां काळेजां डीक उठे,
दांतां जाड़ां जदि दर्द हुदै, सहसा मुखड़े स्यूं चीख उठे।। ११. झीणी-झीणी निशि ओस पड़े, झांझरकै जम ज्यावै जंगळ,
जंगळ जा हाथ ऊजलातां, जाड़े स्यूं बर्फ हुवै जम जळ। धोरां-धोरां में धोळा-सा चांदी का जाणे बरग बिछै,
जम ज्याय जलाशय भी सतीर, कित्ती सुंदर तस्वीर खिंचै।। १२. है खबर अगर दाहो पड़ज्या, ल्यो पहल आकड़ां री बारी,
जळज्या बिन आग लपट्टां कै, बेचारां री भारी ख्वारी। सूका लक्कड़ जळ खाक हुवै, लखदाद पड़े लक्कड़दाहो,
एहडै जाडै की जोखिम में जाखेड़ा केवल लै लाहो।। १३. जब मौसम पोवट मावट री, बो बिना बगत रो मेहड़लो,
डटकारां डांफरड़ी बाजै, बूंवरली तजै न नेहड़लो। सूरज भी तेज तपै कोनी, जाडै स्यूं डरतो वेग छुपै,
सिगड़यां सारी रातां सिळगै, पाणी स्यूं हाथ न पांव धुपै।। १४. मोटी रातां तड़को मोटो, ले नींद स्तनंधय भी धापै,
सज्झाय सहस्रां गाथां री कर संत समय 'सी' रो कापै। ऊंडा ओरां भौंहरां भीतर, दे पड़दा मुनि रजनी गाळे। कोरा कपड़ां स्यूं के होणो, जोरां चमकै 'सी' सीयाळे ।।
आज मन हरसै रे, ज्ञानी गुरु घर आया। सरस रस बरसै रे, मंगल मोद मनाया।।
१५. श्रावक संग उमंगे भीना, सद्गुरु सन्मुख आवै।
चरण-प्रणाम नाम शिर करता, हर्ष-हिलोळा खावै ।।
१. लय : रूडै चंद निहालै रे नवरंग
१८८ / कालूयशोविलास-१