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२४. सातम कृष्णा कार्तिकी कांइ, नव दीक्षा इक साथ।
पूज्य-पुण्य नै मापणो कांइ, गगन झापणो बाथ।। २५. आबू-ए. जी. जी.स्वयं कांइ, दरसण किया सचेत ।
सफल पूर्ण पावस हुयो कांइ, संघ-समुन्नति-हेत।। २६. सांभर झाग सिणोदियै कांइ, मिगसर में मकराण। बोरावड़ दस दिन रह्या काइ, ठाकुर-विनती माण।।
दोहा २७. गढ़-सुजान गुरुवर ठव्यो, माघोत्सव-मंडाण। ___मुनि इक्काणू साहुणी शत-सित्ताणू जाण।। २८. हो बीदासर आदि पुर, इक्यासी री साल।
चूरू पावस पांगर्यो, करुणा करी कृपाल।। २६. श्रमण साथ में बीस छव, श्रमणी है बत्तीस।
रायचंदजी रै नयै कमरै बसै अधीश।।
सुणो सुखकारी रे। कालूयशोविलास भ्रमण-भय-हारी रे।।
३०. प्रथम याम व्याख्यान में रे, सूत्र भगवती सजोड़।
परिपदि श्री वदनाम्बुजे रे, गावै मुनिगण-मोड़।। ३१. मोहनविजये मोहनो रे, रचियो चंद-प्रबंध।
जयकृत सुरभित सोहनो रे, सुधा स्वाद निस्पंद।। ३२. सो स्वामी प्रारंभियो रे, स्वमुख देशना काल। __ तिणरो वर्णन जो करै रे, वाचक है वाचाल।। ३३. वीणा-सी झीणां स्वरी रे, मधुरी राग उदात।
..मृग-मन लहलीणां हुया रे, भवियां रा तिण स्यात।। ३४. सुधिजन सारंग वीसऱ्या रे, सावन घन ओगाज।
खान-पान स्नानादि रा रे, गौण हुआ सब काज।।
१. जी. आर. होलेंड साहब २. लय : राजा राणी रंग थी रे खेलै अनुपम खेल
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