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१२. हार्दिक विनय विलोक नै, विनती स्वीकृत खास।
स्वाम करी आरत टरी, विहरी व्यथा प्रवास।।
'सुगुण! श्रुति खोलोजी, न इत-उत डोलोजी, हो जी ओ तो कालूयशोविलास मधुर मनु ओळोजी,
प्रेम-पय घोळोजी।
१३. जेठ मास में गुरु कियो काइ, जयपुर बाट विहार। ____ डीडवाणै कूचामणू काइ, जोबनेर जन तार ।। १४. सात रात पुर बाहिरे काइ, जयपुर नगर प्रवेश ।
बिद सातम आषाढ़ की कांइ. निरखण योग्य निवेश।। १५. लाला रो आलय खिल्यो कांइ, धरी चरण-रज पूज।
आठ बीस सत बीस ही काइ, संत सती संयूज।। १६. पावस आयो साचलो काइ, छायो मुदिर सजोर।
सदा वृष्टि पीयूष-सी काइ, धर्म-सृष्टि कमजोर।। १७. भावुक जन-मन भूतले काइ, अनुभव-नव-अंकूर।
सहृदय-हृदय-दयार्द्रता काइ, फलिता प्रवर प्रचूर।। १८. परम धरम पाकी फसल काइ, कर्म अकाले कोप।
भरम-भानु भापित बण्यो काइ, वच-वार्दल आटोप।। १६. सुमति-शांति-स्रोतस्विनी कांइ, बहै करत कोकाट।
विनय-बगीचो फूलियो काइ, सुरभित बाट विराट।। २०. वनराजी राजी हुई कांइ, लाजी लखि लोकेश।
पचरंगा सुमनां सझ्यो काइ, आवृत अंग सवेश ।। २१. देश-देश स्यूं आविया काइ, मानव मधुकर-रूप।
गुण-गुंजारव गावतां कांइ, प्रमदोत्थित रूं-कूप।। २२. पूज्य-पदाम्बुज भेटिया काइ, जयपुर रेजीडेंट।
हृदय-स्थल शीतल हुयो काइ, सिंचित गुरु-वच सेंट।। २३. प्राइम मिनिस्टर प्रांत रो काइ, साहब ग्लेन्सी नाम।
गुरुवर दर्शन पाविया कांइ, सुकृत योग शुभ याम।।
१. लय : पायल वाली पदमणी २. पिटरसन साहब
१८४ / कालूयशोविलास-१