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बद बद पाप बतावै हो, बहकावै अणपढ़ आप-सा,
चोड़े-धारे हा! हा! रे अन्याय ।। १६. वीर विभू तो चूक्या हो, गुरु कूक्या श्री रघुनाथजी,
दया धर्म रो मूल कियो व्यपनाश। आं तीनां बिन कोरी हो, सीनाजोरी जड़ता भरी,
म्हारै मन में ओ मोटो उपहास।। १७. इसड़ा छापा छाप्या हो, अणमाप्या मान मरोड़ में,
हाथो-हाथे आप्या इश्तीहार। भीता-भीतां थाप्या हो, नहिं माप्या जावै माप स्यूं,
तो पिण दिल में धाप्या नहीं लिगार।।
केती धूम मचावो हो, मन मोद मनावो नाच नै। आखिर तो पछतावो हो, जग आंच नहीं कोइ साच नै।।
१८. गळियां-गळियां रळिया हो, आफळिया बळिया बावळा,
भीषण-भीषण भाषण किया अथाग। बेहद शब्द उचाऱ्या हो, अविचाऱ्या मानवता तजी,
गेहरिया मनु फिरिया खेलण फाग।। १६. कइ नर खोली नोळ्यां हो, दिल होळ्या होळी पाडणै,
ओळ्या-दोळ्यां फिर-फिर रातो-रात। भ्रमना-भस्म विलेपी हो, गुरु-निन्दा गेरू गोठवी,
जाबक बणग्या बाबाजी री जात।।
दोहा
२०. सन्त सत्यां प्रतिदिन सही, गाळ्यां री बौछार।
रूपां जतणी राखती, सतियां री संभार।। २१. पथ में आवत-जावतां, नाना रंग बिरंग।
सह्या उपद्रव शांतमन, नित-नित नया प्रसंग।। २२. धैर्यध्वंसिनी धृष्टता, अमानुषिक आचार।
क्षमाशील क्षमता परै, तर्कण-सो तकरार।।
१८० / कालूयशोविलास-१