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२३. आज रांगड़ी चौक में, भीषण हुसी भिड़त।
सहनशीलता री अरी, सीमा होवै अंत।। २४. सुमेरमलजी बोथरा आदि श्राद्ध-समुदाय।
उद्यत करण मुकाबलो, अणसहता अन्याय।। २५. सुणी खबर कालूगणी, अणी टाळणे हेत।
उपशम री ताणी तणी, मगन संत संकेत।। २६. मगन याद करतां तुरत, आया सेठ समेर ।
सामायिक पचखाय दी, टळी लड़ाई-टेर।। २७. सेना रही अडीकती, सेनानी जब कैद।
सारी समझाई स्थिती, सूक्यो सारो स्वेद ।। २८. वाऱ्या बालक बोथरा, देखी दूध-उफाण।
श्रीकालू वचनामृते, सिंचित उचित प्रमाण।। २६. पुरजन-मन रोषाग्नि रो, प्रतिदिन बध्यो प्रकोप।
पूज्यप्रवर रो प्रबलतम, उपशम-भाव अनोप।। ३०. ज्वलन-ज्वालमालाकुला, दुनिया में दुर्लंघ। जल-जाला जाहिर हुयां, हुवै अनोखो रंग।
सोरठा ३१. इकतरफो आक्रोश, द्वेष-दाव सारै शहर।
ओ आक्रमण सरोष, निसुणी 'गंगासिंह' नृप।। ३२. मुखिया-मुखिया लोक, तीनूं ही समुदाय रा'।
तेड्या नृप निज ओक, उद्यम सामंजस्य-हित।। ३३. लिखवायो इकरार, हस्ताक्षर सबरा हुया।
नहिं भविष्य में वार, कोई किण ऊपर करै।। ३४. क्षणिक कलह उपशांत, मिटी न मन की मूर्छना।
समझौतै उपरांत, बो ही पथ बा ही क्रिया।।
१. जैनधर्म के तीन सम्प्रदाय-मूर्तिपूजक, स्थानकवासी और तेरापन्थी। २. महाराज गंगासिंह के पाटवी कंवर (बीकानेर राज्य के तत्कालीन गृहमंत्री) श्री शार्दूलसिंहजी
ने वह इकरारनामा लिखवाया।
उ.३, ढा.१ / १८१