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१८. कठै है अठै भक्त - टोळी भरै जो झरझरती झोळी, नहीं जनता भाळी-भोळी, धरै जो रोक रूप्य नोळी । मनमानी मोजां मिलै, रोजानां जिण देश, ठावै ठाणो आणो- जाणो है न पसंद हमेश । रेस आ पन्ध्यां री पाई ।।
१८. अठै हां आपां ही आपां, इंयां रो मूल जड़ां कापा, टिप्पण्यां छाप छाप छापां, प्रतिष्ठा पहली उत्थापां । इण भय स्यूं आवै नहीं, ओ निश्चय इकरार, जो आवै तो एक-एक रा, लाख-लाख कलदार । धार ल्यो दिल में दृढ़ताई ।।
२०. आज आषाढ़ शुक्ल नवमी, पधारै पावस त यमी, शहर में चहल मची भारी, परस्पर प्रश्नोत्तर जारी । आया आया सब कहै भीखण- गण - भरतार, कण कण ! यूं विस्मित पूछत, देख्या हणां - हमार । नार-नर लार हजारां ईं । ।
२१. चळकतो चळक-चळक चेहरो, मलकतो श्रमण संघ-सेहरो, विलोकन खलक-मुलक भेरो, अलख छक खमा-खमा केरो । द्वेषी दिल द्विगुणित हुयो, द्वेष-भाव उद्भाव, प्राप्त घृताशन जिंयां हुताशन, मानो तिण प्रस्ताव । घाव पर ठोकर है खाई ।।
२२. करी चरचा भीनासर में, जरा भी असर नहीं स्वर में, अबै आ आय बणी घर में, फबै उद्यम निशि वासर में 1 ज्यूं बीकायत में बली, कदै न आवै चाल, यशोविलासे युग उल्लासे, तुलसी गणी रसाल । ढाळ आ पन्द्रहवीं गाई ।।
ढाळ: १६.
दोहा
१. दूजे उल्लासे सही, दीक्षा व्यतिकर देख । पाठक सुविधा-हित करूं, एकत्रित उल्लेख।।
१६८ / कालूयशोविलास-१