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सोरठा २. सित्तर' फाल्गुन मास, वैगाणी विरगत हृदय।
सपत्नीक सोल्लास, संयम लियो हुलासमल।। ३. तपी तपस्या खास, पक्ष मास दो मास तक।
लघुसिंह विमल विकास, तीन करी परिपाटियां।। ४. आतापन अधिकार, ओढी एक पछेवड़ी।
बरसां लग इकसार, कृपापात्र श्री पूज्य रो।। ५. वैरागी बागोर-वासी वृद्धीचन्द वर।
दीक्षित शक्ति बटोर, इकोत्तरै आसोज में।। ६. सुत-माता अनुकूल, मोती फूलां लाडणं।
भाव-झूलणे झूल, मिगसर में संजम लियो।। ७. चोरड़ियो शिवराज, बड़ ग्राम रो वासियो।
सपत्नीक शिव-काज, ब्यावर में चारित लियो।। ८. प्यारी प्यारां मात, कानूड़ो रूड़ो मुनि।
पुर दीक्षा गुरु-हाथ, वर्ष बहोत्तर चेत सुद।। ६. रतनां पत्नी साथ, इमरतमल बीदाण रो।
दीक्षा अनुपम आथ, नाथदुवारै जेठ बिद।।
___लावणी छंद
१०. अब गोगुन्दै आषाढ़ मास सुख माणी,
गुरु-चरणां च्यारूं दीक्षा हुई सुहाणी। धनजी बेमाली छोगो बोराणै रो, भूरांजी निजरकुंवारी कन्या हेरो। उदियापुर में बलि तीन बहोत्तर मिगसर, लै भागचन्द अरु शोभाचन्द चरण वर । सीसाय-निवासी दया दया दिल धारी, दूजे उल्लासे सुणो ख्यात दीक्षा री।
१. वि. सं. १६७० २. हुलासमलजी की पत्नी का नाम मालूजी था। ३. देखें प. १ सं. ४२ ४. शिवराजजी की पत्नी का नाम हुलासांजी था।
उ.२, ढा.१६ / १६६