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'छटा छोगा-सुत री छाई। यशोगाथा गुणिजन गाई।।
१३. विशद वच स्वामी अब भाखे, पडुत्तर म्हारो सहु साखे,
यदिच्छा मानो मत मानो, मुधा मत पक्षपात तानो। आगम अर्थ समर्थ-बल, है म्हारो उपदेश, जोरीदावै किंयां मनावै, देखो वीर जिनेश।
जमाली वाली जड़ताई।। १४. ऊठ-उठ सहज शान्त सारा, सिधारया निज घर परबारा,
सत्य सिद्धान्तां रै स्हारै, चले बो क्यूं किणरै सारै? निज पंडित स्यूं निज विजय, आशा अपरंपार, पर सद्भाव सरलता बिन, निज घातक निज हथियार।
सार है जग में सच्चाई।। १५. पधारे बलि गंगाशहरे, युगल दीक्षा-झण्डी फहरे,
स्तोक दिन पावस बिच ठहरे, लगी आवन सावन-लहरें। बीकाणै गंगाण रा, विनवै वासी लोग, पूज्य प्रकाशो अब चोमासो, बीकानेर विलोग।
सुखद संजोग मिल्यो आई।।
१६. लही निर्देश मगन स्वामी, निहारै आश्रय अनुगामी,
वेग बीकाणै चल आया, निकेतन नेक निजर ठाया। चौक रांगड़ी रै निकट, ओक विलोकै एक, 'लाल कोटड़ी'३ खड़ी करै मनु अम्बर सह आरेक।
देख गुरु-चरणां दरसाई।। १७. विरोधी सला करै छानै, रखै पंथी पावस ठान,
स्थान अन्वेषण अनुमाने, विमर्शण करणो आपां नै। अज्ञानी मानी वदै, क्यूं अकल्प्य आभास? भूल-चूकै कभी न ढूकै चरण करण चउमास।
खास बीकाण ठाण ठाई। १. लय : निमित नहिं भाखै गुरु ज्ञानी २. देखें प. १ सं. ६८ ३. सुमेरमलजी बोथरा का मकान
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