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१५. भैया! ठहरे गंगाशहरे, जठै न अपणो जोरो।
भीनासर जिण वासर आसी, तब दिखलास्यां तोरो।।
पूज्य पधाऱ्या रे परिकर स्यूं, है सुगुण श्रमण बहु लारें, पूज्य पधाऱ्या रे... है भावुक श्रावक सारे, पूज्य पधाऱ्या रे... है खमा-खमा धुंकारे, पूज्य पधाऱ्या रे...
१६. मास आसरे गंगाशहरे, अद्भुत आब उपाई। ___अब भीनासर भाल विभासुर, विभुवर महर कराई।। १७. स्थानकवासी तत्र निवासी, श्रावक लै अंगड़ाई।
करणो है शास्त्रार्थ पूज्य सह, साझ सबल सुघड़ाई।। १८. श्री कालू गुरु सन्मुख, उन्मुख एक पारटी आई।
मानी कानीराम बांठिया, तिण में ख्याती पाई।। १६. कुछ क्षण शिष्टाचार निभाकर चरचा शीघ्र चलाई।
'असईजणपोसणियाकम्मे' प्रश्न विषय सुखदाई।। २०. पाठ ‘असइजणपोमणिया' ओ सप्तम-अंगे' आयो।
'असंयति जन पोसणिया' क्यूं भीखणजी बणवायो? २१. वारू बारह व्रत चउपाई, ढाळ आठमी ढारी।
जिन-प्रवचन रो एक वचन विघट्यां अनन्त-संसारी।।
समझो समझो जी गुरु-वाणी, क्यूं भावुकता भवि प्राणी? समझो... आ नहिं है बात अजाणी, समझो... क्यूं है यूं ताणाताणी? समझो...
२२. स्वामी समझावै समभावे, सूत्र पाठ है सागी।
केबल अर्थ यथार्थ समो , भीखण गुरु बड़भागी।। २३. पायचंद सूरी पिण इणरो करै समर्थन साचो।
असल उपासकदशा-सूत्र रो टब्बो क्यूं नां बांचो।।
१. उवासगदसाओ १८३८
उ.२, ढा.१३ / १६१