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गीतक छंद २४. बांठियाजी तब हि विवदै हेतु ले व्यापार रो,
करै पोषण कर्म रो आदान टब्बा में खरो। पूज्य भीखणजी अजी व्यापार नाम तजी कहै,
मात्र पोषण असंजम रो कर्म रो आदान है।। २५. शासनेश्वर ज्यूं जिनेश्वर, मधुर वाणी वागरे,
चउपई बारह व्रतां री, बांच सब भ्रमना हरै। ग्रही पूरब अंश तज अपरांश क्यूं अनरथ करै, बांठियाजी सुमत साझी, क्यूं न अब सत्पथ वरै।।
समझो-समझो जी गुरु-वाणी,
२६. परम पूज्य ले पड़त हाथ में, पूरो पाठ पढ़ायो। ___बो ही भाव प्रभाव रूप में, सारां सन्मुख आयो।। २७. सुण प्रत्युत्तर पृच्छकजी, अब दूजी बात सझाई।
यशोविलासे युग उल्लासे, ढाळ तेरमी गाई।।
ढाळः १४
दोहा १. मानी कानीरामजी, वाणी वदै पिछाण। ___जो पोखै व्यवसाय-हित, तो हो कर्मादाण।। २. पिण बिण व्यवसाये करै, असंयति रो पोष।
तो तिणमें कुण दोष है? ओ मम प्रश्न सजोश ।। ३. कर्मादान नहीं सही, तो पिण कर्म निदान।
नहिं निषेध तो वैध है, वदै विवादी वान।। ४. सूत्र भगवती रो सुभग, प्रगट विलोको पाठ ।
असंजती नै पोखियां, बधै पाप की बाट ।।
१,२. देखें प. १ सं. ६७
३. लयः जिण घर जाज्ये है नींदड़ली ४. भगवई श. ८।२४७
१६२ / कालूयशोविलास-१