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पूज्य पधार्या रे परिकर स्यूं,
सज्जन जन विधियुत वन्दे, पूज्य पधार्या रे... मनु न्हावै सुकृत-समन्दे, पूज्य पधार्या रे... उलसावै अति आनन्दे, पूज्य पधार्या रे...
६. गिरिगढ़ स्यूं गयवर सम गणिवर, बीकायत री बाटे । सर्वश्रेष्ठ ज्येष्ठ महिना में, गंगाशहर सुघाटे । । ७. श्रद्धावान सुजान मनुज-घर मंगल-माला छाई । धन्य दिहाड़ो धन्य घड़ी पुळ, घर में गंगा आई ।। ८. पूज्य-पदाब्ज-पराग-पिपासी, भविक-भृंग बहु आवै ।
गुण-गुंजार उदार-भाव-युत, झुक-झुक शीष झुकावै।। ६. पूज्य-पदार्पण श्रवण-सुणत ही, बीकायत रा वासी । इतर मतालंबी कइ दंभी, अवलंबी दिल हांसी ।।
देखो आया रे पन्थीड़ा,
अपणी पांत बढ़ाणै, देखो आया रे... जो आता आणै-टाणे, देखो आया रे... कांई करसी कुण जाणै, देखो आया रे...
१०. पहली तो छब्बीस बरस स्यूं आया हा धसमसकै । अबकै अभिनव नव बरसां स्यूं, पक्की कमरां कसकै । । ११. मानो बीकानेर शहर री, सैर करण अनुराग्या ।
तज बीदायत बण व्यायतमुख, आवै भाग्या भाग्या ।। १२. एक कहै आंरो मन उमग्यो, लग्यो 'बिकाणो' प्यारो ।
करसी अठै पड़ाव जाव है, बड़ो लगाव विचारो ।। १३. कई कहै पहलां म्है कहता, इणरो बीज उखाड़ो ।
वृद्ध हंस ज्यूं हंस- वंश नै, पिण अब बध्यो कबाड़ो ।। १४. एक-एक आंगल नै पकड़ी, पकड्यो चावै पूंचो । अब तो लागै नाजुक धागै, बण्यो इरादो ऊंचो ।।
१. लय : जिण घर जाज्ये हे नींदड़ली
२. देखें ष. १ सं. ६६
१६० / कालूयशोविलास-१