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'परम गुरु पुनवानी। ३८. दूजै दिन बाजार में, हुइ दीक्षा निष्प्रत्यूह।
भारी जन-समुदाय में, कोइ करी न ऊह-पचूह ।। ३६. जय-जय श्री छौगेय रा, है घुऱ्या भिवाणी शहर।
सुजश-नगारा सांतरा, घर-घर में लीला-लहर । ४०. पूज्य वेश की नकल कर, कोइ अपर उदंगल एक।
कियो विरोधी जन खड्यो, प्रतिशोध-भाव अविवेक।। ४१. तिण में न हुवै सुगुरु रो, जदि उपशम रो उपदेश।
तो कलमथ माचै घणो, पर शान्त सहज संक्लेश।। ४२. हरियाणै री जातरा, भीवाणी चातुर्मास।
दूजे उल्लासे कही, ग्यारहमी ढाळ सुवास ।।
ढाळः १२.
दोहा १. 'बन्द रख्यो व्यापार निज, सारै चातुरमास।
माल धरयो गोदाम में, भक्त द्वारकादास।। २. सुखे-सुखे पावस करा, पूरी सेवा साध।
आपण खोली आपणी, सुमरत सुगुरु-प्रसाद।। ३. आई तेजी माल में, दुगुणा-तिगुणा दाम।
हाथोहाथ इंयां मिलै, सुगुरु-सेव-परिणाम ।। ४. मोच्छब अरु चौमास में, ले सारो परिवार । ___दरसण करतो 'द्वारका', हर बरसे दो बार।। ५. कठिन-कठिनतर गोचरी, डरता रहता संत।
भक्त द्वारकादास पर, कालू-कृपा अनंत।। ६. थळी देश संपन्न-घर, शकट सैकड़ों साथ।
हरियाणै सेवा करी, रही प्रभावक बात।। ७. भीवाणी स्यूं मुनिपति, मिगसर मास सकाम। .
ग्राम-ग्राम विहरत लियो, 'हांसी' पुर विश्राम।। ८. तीन रात विख्यात गुरु, स्थिति कीन्ही हिस्सार ।
___ 'कुरड़ी' 'बालसमंद' बलि, नजर 'डाबड़ी' डार।। १. लय : बगीची निम्बुवां की... २. सेटू-बलदेव फर्म ने उस चातुर्मास में अपना पूरा व्यापार बन्द रखा था।
उ.२, ढा.११, १२ / १५५