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२८. मत छीजो तीजो कहै रे, धीजो लीज्यो देख।
दीक्षा-मण्डप स्यूं उठा रे, ल्यास्यां आ दृढ़ टेक।। २६. जीवित जब लों शहर में रे, जन छत्तीस हजार।
तब लों दीक्षा-कल्पना रे, गगन-कुसुम अनुहार।। ३०. मन-मोदक आमोद स्यूं रे, आरोगै भर पेट।
धर्म-जोश जाग्यो इतै रे, सारी शक्ति समेट।।
'परम गुरु पुनवानी।
३१. धोळो धोळो गगन स्यूं, आकस्मिक गोळो एक।
पड्यो सभा रै बीच में, है अजब कर्म री रेख।।
आयो रे आयो, गोळो ओ अजब-गजब आकाश स्यूं। जन मन घबरायो, धोळो ओ धोळो है आभास स्यूं।।
३२. हाय! मारणी गाय, गाय रो बछड़ो छड़ो खड़ो-सो।
ओ कोई बजराक धाक, आभै स्यूं पड्यो घड़ो-सो रे।। ३३. नहीं नहीं, रोषातुर उतरी अरी ओपरी छाया।
ओ पिशाच या देत-प्रेत री आ अमानवी माया रे।। ३४. चटक-कटक जाणक पत्थर स्यूं, थर-थर धूजत धाया।
भीम-भयाकुल बोलै व्याकुल, खाया रे इण खाया रे।। ३५. एक-एक पर एक धड़ाधड़ कई पडै दड़बड़ता। ___ गोडा फोड्या भर-अन्धेरै, आखड़ता रड़भड़ता रे।। ३६. भाग-भाग इक लाग-लाग कइ, पाग पानही भूला।
आ अब सभा-मंच अवलोको, मिलै न लंगड़ा-लूला रे।। ३७. दीक्षा-विषय समीक्षा री नहिं, कोई करी प्रतीक्षा।
निज कृत दुष्कृत परम प्रयोगे, मिली सलूणी शिक्षा रे।।
१. लय : बगीची निम्बुवां की
२. लय : म्हारी रस सेलड़ियां १५४ / कालूयशोविलास-१