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६. 'जीतपुरै' जय-जस वरै, 'भाद्रा' भद्रंकार।
चार दिवस उपकार कर, आगै कियो विहार।। १०. पोष मास निरदोष गुरु, साक्षात शांत सरूप। ___'सरसा' पुर पावन कर्यो, भैक्षवशासण-भूप।।
११. गळी-गली में है खड्या, थळी देश रा लोक। __पौर मनुज गौरव गिण्यो, विभुवर-वदन विलोक।। १२. जमा हुवै तीनूं समय, श्रोतां रो समुदाय।
पूज्य-भारती टारती, हृदय-पिपासा प्राय।। १३. आठ रात गणनाथ री, 'सिरसा' में शुभ दृष्टि।
'नोहर' निज पद-रज धरी, करी वचोऽमृत वृष्टि।।
१दिदारू डालिम-पटधर दीपै।
१४. साल सितंतर शोभै, मर्यादोत्सव मन लोभै हो। दिदारू...
सरदारशहर शुभ जोगै, सान्निध्य सुगुरु रो भोगै हो।। दिदारू... १५. है छ्यासठ मुनिवर भेळा, शत अठरोत्तर सति मेळा हो।
तेबीस रात रहि स्वामी, राजाण निगम-अनुगामी हो।। १६. मुनि कनीराम तिण टाणे, आकस्मिक स्वर्ग प्रयाणे हो।
सुत शक्तमल्ल विरहाणो, आयुर्बल हीन पिछाणो हो।। १७. रहि एक मास पुर मांही, निशि पांच विराजै बाही हो।
तनु-कारण-योग पराणे, अब आया पुर बीदाणे हो।। १८. लै दीक्षा एकण साथे, वसु वसु-पट्टाधिप हाथे हो।
है नूतन बात निराळी, सारां री खिली रूंवाळी हो।। १६. अब छापुर पुर पड़िहारै, वसुगढ़ शुभ निजर निहारै हो।
है अठंतरै चोमासो, अभिनव-कमरो' सुखवासो हो।। २०. पच्चीस संत सेवा में, गुणतीस सती स्थिर थामे हो।
इण संवत री पदयात्रा, चउशत माइल री मात्रा हो।।
१. लय : प्रीतमजी! हिव तुम वेग पधारो २. राजलदेसर ३. आठ ४. रतनगढ़ ५. महालचन्दजी-मोहनलालजी बैद का नवनिर्मित भवन, जो कमरा कहलाता है।
१५६ / कालूयशोविलास-१