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दुमिला छंद १२. तुम मान कुरान प्रमान यदा, निज जान रिवाज नमाज पढ़ो,
सब काज हि त्याज सिवातम-काज, गरीबनिवाज के ध्यान चढ़ो। घड़ि दो घड़ि हेत रहो दृढ़चेत, चहे कोइ आय कटो जु बढ़ो, जंह जीवन-यापन है इह भांत, फकीरि रो पंथ तो अंत बड़ो।।
इंदव छंद १३. आगम रो फरमान इसो, परिधान कियो भगवान रो बानो,
आतम ज्ञान अमी रस पान करी किन को नहिं जीव दुखानो।। एक सुखी चहे अन्य दुखी लखि विश्वव्यथा दिल नां घबरानो,
संत फकीरन को सत्पंथ, चहे कोइ मानो चहे मत मानो।। १४. गौवन-बाड़ लगी कहीं राड़ जगी, जग मच्छ-गलागल जानो,
निब्बल-नाड़ गहै बल-गाढ, फड़ाफड़ फाड़ उजाड़ बहानो। देख कहै पथ नेक उवेख, पडै बिच पेख संसार रो खानो, संत फकीरन को सत्पंथ, चहे कोइ मानो चहे मत मानो।।
लावणी छंद १५. सुण खुश-दिल मुसलमान गुरु नै विरुदावै,
है सही राह आ, जो श्रीमुख फरमावै। अनजान करै बकवास सुवास न जोवै,
नहिं असली सुवरण शान सांवळी होवै।। १६. यूं जन-जन रो संदेह मिटावै स्वामी,
पुर नगर-नगर री डगर गहै शिवगामी। ‘गढ़-टाट' 'देवगढ़' ठाट अनुक्रम आवै,
दस रात रह्या ‘आमेट' भक्त सुख पावै ।। १७. आमेट-राव शिवनाथसिंह जी नेठ,
अति लम्बी दाढ़ी ढळक रही लग पेट। दो बार सुगुरु-पद भेंट दिदारू देह, गुणकीर्तन आंतर मन स्यूं करै सनेह ।।
१. लय : नमूं अनंत चौबीसी
१३२ / कालूयशोविलास-१