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टिप्पण (Notes & References)
303 339. सूत्रकृतांग, I.1.1.10
एवमेगे त्ति जंपंति मंदा आरम्भणिस्सिया। एगे किच्चा सयं पावं, तिव्वं दुक्खं णियच्छइ।। 340. सूत्रकृतांग, II.6.48 ___एवं ण मिजंति ण संसरंति ण माहणा खत्तिय वेस-पेसा।
कीडा य पक्खी य सरीसिवा य णरा य सब्वे तह देवलोगा।। 341. सूत्रकृतांग, II.1.51
...अण्णस्स दुक्खं अण्णो णो परियाइयइ, अण्णेण कतं अण्णो णो पडिसंवेदेइ, पत्तेयं जायइ, पत्तेयं मरइ, पत्तेयं चयइ, पत्तेयं उववज्जइ, पत्तेयं झंझा, पत्तेयं सण्णा, पत्तेयं
मण्णा, पत्तेयं विष्णू, पत्तेयं वेदणा।.... 342-I. स्थानांग, 1.2
एगे आया II. समवायांग, 1.4
एगे आया 343. भगवती, 2.10.134-135 (देखें-मूल नं. 277) 344. भगवती, 18.10.220
सोमिला! दव्वट्ठयाए एगे अहं, नाणदंसणट्टयाए दुविहे अहं, पएसट्टयाए अक्खए वि अहं, अव्वए वि अहं, अवट्ठिए वि अहं, उवओगट्ठायाए अणेगभूय-भाव-भविए वि
अहं। ते तेणटेणं जाव अणेगभूय भाव-भविए वि अहं। 345. अनुयोगद्वार, 12.605
से किं तं वत्तव्वया? वत्तव्वया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-ससमय वत्तव्वया परसमयवत्तव्वया ससमयपरसमयवत्तव्वया। अनुयोगद्वारचूर्णि, पृ. 86 एवं उभयसमयवक्तव्यतास्वरूपमपीच्छति जधा ठाणांगे एगे आता' इत्यादि, परमसमयव्यवस्थितता ब्रुवति-एक एव हि भूतात्मा, भूते भूते व्यवस्थितः। एकधा बहुधा चैव दृश्यते जलचन्द्रवत्।। स्वसमयव्यवस्थिताः पुनः ब्रुवंति उवयोगादिकं सव्वजीवाण सरिसं लक्खणं अतो
सव्वभिचारिपरसमयवत्तव्वया स्वरूपेण ण घडति। 347. विशेषावश्यकभाष्य, 1582
णाणा जीवा कुम्भातयो व्व लक्खणातिभेदातो। सुह टुक्ख-बंध मोक्खाभावो य जतो तदेगत्ते।। 348. सांख्यकारिका, 18
जन्ममरणकरणानां, प्रतिनियमादयुगपत्प्रवृत्तेश्च । पुरुषबहुत्वं सिद्धं, त्रैगुण्यविपर्ययाच्चैव।।
346.