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________________ टिप्पण (Notes & References) 295 II. तैत्तिरीयोपनिषद्, 2.2 यतो वाचो निर्वतन्ते, अप्राप्य मनसा सह। 295. आचारांगसूत्र, I.5.6.127-135 से ण दीहे, ण हस्से, ण वट्टे, ण तंसे, ण चउरंसे, ण परिमंडले।127 ण किण्हे, ण णीले, ण लोहिए, ण हालिद्दे, ण सुक्किल्ले ।128 ण सुब्भिगंधे, ण दुरभिगंधे।129 ण त्तिते, कडुए, ण कसाए, ण अंबिले, ण महुरे।130 ण कक्खडं, ण मउए, ण गरुए, ण लहुए, ण सीए, ण उण्हे, ण णिद्धे, ण लुक्खे।131 ण काऊ ।132 ण रुहे।133 ण संगे।134 ण इत्थी, ण पुरिसे, ण अण्णहा।135 296. तुलना, श्वेताश्वतरोपनिषद्, 5.10 नैव स्त्री न पुमानेष, न चैवायं नपुंसकः। यद् यद् शरीरमादत्ते, तेन तेन स रक्ष्यते।। 297. आचारांगसूत्र, I.5.6.136-140 परिणे सण्णे।136 उवमा ण विज्जए।137 अरूवी सत्ता।138 अपयस्स पयं णत्थि।139 से ण सद्दे, ण रूवे, ण गंधे, ण रसे, ण फासे, इच्चेताव।140 298. भगवती, 20.3.20 अह भंते! पाणाइवाए, मुसावाए जाव मिच्छादसणसल्ले, पाणातिवायवेरमणे जाव मिच्छादसणसल्लविवेगे, उप्पत्तिया वेणइया कम्मया पारिणामिया, ओग्गहे ईहा अवाए धारणा, उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे, नेरइयत्ते, असुरकुमारत्ते जाव वेमाणियत्ते, नाणावरणिज्जे जाव अंतराइए, कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा, सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्टि सम्मामिच्छदिट्ठि, चक्खुदंसणे अचक्खुदंसणे ओहिदसणे केवलदसणे, अभिणिबोहियनाणे, जाव विभंगणाणे, आहारसण्णा भयसण्णा मेहुणसण्णा, परिग्गहसण्णा, ओरालियसरीरे वेउब्वियसरीरे आहारगसरीरे तेयगसरिरे कम्मगसरीरे, मणजोगे वइजोगे कायजोगे, सागारोवओगे, अणागारोवओगे, जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते नण्णत्थ आयाए परिणमंति? हंता गोयमा! पाणाइवाए जाव सब्वे ते नण्णत्थ आयाए परिणमंति।। 299. स्थानांग, 8.114 .....चउत्थे समए लोगं पूरेति।
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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