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________________ 294 जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद 286. भगवती, 1.9.440 से नूणं भंते! अथिरे पलोट्टइ, नो थिरे पलोट्टइ? अथिरे भज्जइ, नो थिरे भज्जइ? सासए बालए, बालियत्तं असासयं? सासए पंडिए, पंडियत्तं असासयं? हंता गोयमा! अथिरे पलोट्टइ, नो थिरे पलोट्टइ। अथिरे भज्जइ, नो थिरे भज्जइ। सासए बालए, बालियत्तं असासयं सासए पंडिए, पंडियत्तं असासयं ।। 287. भगवती, 7.3.93-94 नेरइया णं भंते! किं सासया? असासया? गोयमा! सिय सासया, सिय असासया।।93 से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ नेरइया सिय सासया? सिय असासया? गोयमा, अव्वोच्छित्तिनयट्ठाए सासया वोच्छित्तिनयट्ठाए असासया। से तेणटेणं जाव सिय सासया, सिय असासया।।94 288. भगवती, 9.33.233 सासए जीवे जमालि जं न कयाइ नासि, न कयाइ, न भवइ न कयाइ न भविस्सइ-भुविं च, भवइ य, भविस्सइ य-धुवे, नितिए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए, निच्चे। असासए जीवे जमाली। जण्णं नेरइए भवित्ता तिरिक्खजोणिए भवइ तिरिक्खजोणिए भवित्ता मणुस्से, भवइ, मणुस्से भवित्ता देवे भवइ। 289. उत्तराध्ययन, 2.27 ...नत्यि जीवस्स नासुत्ति। 290. आचारांगसूत्र,I.3.3.58 आगतिं गतिं परिण्णाय, दोहिं वि अंतेहिं अदिस्समाणे। से ण छिज्जइ ण भिज्जइ, ण डज्झइ ण हम्मइ ...कंचणं सव्वलोए।। 291. गीता, 2.24 अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च। नित्यः सर्वगतः स्थाणुश्चलोऽयं सनातनः।। 292. आचारांगसूत्र, 15.6.123-125 सव्वे सरा णियट्टति 123 तक्का जत्थ ण विज्जइ ।124 मई तत्थ न गाहिया।125 293. तुलना, उत्तराध्ययन, 14.19 नो इंदियग्गेज्झ अमुत्तभावा अमुत्तभावा वि य होइ निच्चो। 294-I. केनोपनिषद्, 1.3 न तत्र चक्षुर्गच्छति, न वाग्गच्छति, नो मनः।
SR No.032428
Book TitleJain Agam Granthome Panchmatvad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandana Mehta
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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