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यह स्पष्ट हो जाता है कि जैनाचार्यों द्वारा न केवल धार्मिक और दार्शनिक क्षेत्रों में, अपितु ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भी बहुआयामी-ग्रंथों का प्रणयन कर भारतीय संस्कृति और साहित्य को अभिनव-क्षितिज प्रदान किये गये हैं। भारतीय साहित्य और प्रातिभज्ञान की परम्परा में इनका योगदान अतुलनीय है। भारतीय-साहित्य का इतिहास लिखनेवाले अधिकांश लेखकों ने इनकी उपेक्षा साम्प्रदायिक-दृष्टिकोण से की है अथवा विषयज्ञान की व्यापकता न होने से की है। इससे भारतीय-साहित्य की व्यापकता का पूर्णबोध नहीं हो पाया है। अतः यह आवश्यक है इनके प्रकाश्य-संस्करणों में ये तथ्य निष्पक्षता में जोड़े जायें ताकि सम्पूर्ण विश्व के समक्ष भारतीय-वाङ्मय की गरिमा का सम्पूर्णता से बोध हो सके। संस्कृत-भाषा के कवि और लेखक
संस्कृत-काव्य का प्रादुर्भाव भारतीय-सभ्यता के उष:काल में ही हुआ था। जैन-कवियों और दार्शनिकों ने दर्शनशास्त्र के गहन और गूढ ग्रन्थों का प्रणयन संस्कृत-भाषा में भी किया था तथा दर्शन के क्षेत्र को अपनी महत्त्वपूर्ण रचनाओं के द्वारा समृद्ध बनाया।
प्रमुख एवं प्रभावक संस्कृतभाषी कवियों एवं लेखकों का संक्षिप्त वर्णन निम्नानुसार किया जा रहा हैकवि परमेष्ठी या परमेश्वर
कवि परमेश्वर का स्मरण 9वीं शती से लेकर 13वीं शती तक के कन्नड़ कवि एवं संस्कृत के कवि करते रहे हैं। उद्धरणों से स्पष्ट है कि कवि परमेश्वर अत्यन्त प्रसिद्ध और प्रामाणिक पुराण-रचयिता हैं। इस पुराण का नाम 'वागर्थसंग्रह' था। इस ग्रन्थ की रचना समन्तभद्र और पूज्यपाद के समकालीन अथवा कुछ समय पश्चात् हुई होगी। कवि परमेश्वर की रचना ही समस्त जैन-पुराण-साहित्य का मूलाधार है। महाकवि धनञ्जय
'द्विसन्धानमहाकाव्य' के अन्तिम पद्य की व्याख्या में टीकाकार ने इनके पिता का नाम वसुदेव, माता का नाम श्रीदेवी और गुरु का नाम दशरथ सूचित किया है। इनका समय ई. सन् की 8वीं शती के लगभग है।
इनकी रचनाओं में 'धनञ्जय नाममाला' छात्रोपयोगी 200 पद्यों का शब्दकोश है। इस नाममाला के साथ 46 श्लोकप्रमाण एक अनेकार्थनाममाला भी सम्मिलित है। 'विषापहारस्तोत्र' एक स्तुतिपरक काव्य है। 'द्विसन्धानमहाकाव्य' सन्धानशैली का सर्वप्रथम संस्कृत-काव्य है।
भगवान महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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