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आचार्य वीरसेनाचार्य
बहुआयामी ज्ञान-विज्ञान के साथ-साथ अगाध कवित्व-प्रतिभा के धनी आचार्य वीरसेन जैन-आचार्य-परम्परा के अद्वितीय मनीषी हैं, जिन्हें समस्त परवर्ती आचार्यों और मनीषियों ने अत्यन्त बहुमान के साथ स्मरण किया है। आपके द्वारा 'षट्खण्डागम' आदि सिद्धान्त-ग्रंथों पर रचित टीका-साहित्य विश्व-भर के व्याख्या-साहित्य में अद्वितीय स्थान रखता है। इतना ही नहीं, व्याख्या-साहित्य के मानदण्ड भी आपके द्वारा निर्धारित किये गये हैं, तथा इस विद्या के अनेकों अभिनव प्रयोग इनके व्याख्या-साहित्य में स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं।
आप पंचस्तूपान्वय' के आचार्य 'आर्यनन्दि' के द्वारा दीक्षित थे, तथा आपके विद्यागुरु का नाम 'एलाचार्य' था। गुरु की आज्ञा से आपने 'वाटग्राम' (बड़ौदा) के 'आनतेन्द्र-जिनालय' में 'बप्पदेव' द्वारा निर्मित सिद्धान्त-ग्रन्थ की टीका का अध्ययन कर उन्होंने कुल 72,000 श्लोकप्रमाण 'षट्खण्डागम' की धवलाटीका लिखी। तत्पश्चात् 'कषायप्राभृत' की चार विभक्तियों की 20,000 श्लोकप्रमाण ही जयधवलाटीका लिखे जाने के उपरान्त उनका स्वर्गवास हो गया, और उनके शिष्य जिनसेन द्वितीय ने अवशेष जयधवलाटीका 40,000 श्लोकप्रमाण लिखकर पूरी की।
__अनेक विद्वानों के विभिन्न अनुमानों के बीच आचार्य वीरसेन का समय ईस्वी सन् की नौंवीं शताब्दी (ईस्वी सन् 816) माना है। इनकी दो ही रचनायें उपलब्ध हैं। इन दोनों में से एक पूर्ण रचना है, और दूसरी अपूर्ण। इन्होंने 72,000 श्लोकप्रमाला प्राकृत और संस्कृत-मिश्रित भाषा में मणि-प्रवालन्याय से 'धवला' टीका लिखी है। वीरसेनस्वामी ने 92,000 श्लोकप्रमाण रचनायें लिखी हैं। एक व्यक्ति अपने जीवन में इतना अधिक लिख सका, यह आश्चर्य की बात है। इन टीकाओं से वीरसेन की विशेषज्ञता के साथ बहुज्ञता भी प्रकट होती है।
वीरसेनाचार्य ने अकेले वह कार्य किया है, जो कार्य 'महाभारत' के रचयिता ने किया है। महाभारत का प्रमाण एक लाख श्लोक है, और यह टीका भी लगभग इतनी ही बड़ी है। अतएव 'यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत्क्वचिद्' उक्ति यहाँ भी चरितार्थ है। आचार्य जिनसेन द्वितीय
आचार्य जिनसेन द्वितीय, श्रुतधर और प्रबुद्धाचार्य के बीच की कड़ी होने के कारण इनका स्थान सारस्वताचार्यों में परिगणित है। ये प्रतिभा और कल्पना के अद्वितीय धनी हैं। यही कारण है कि इन्हें 'भगवत् जिनसेनाचार्य' कहा जाता है। श्रुत या आगम-ग्रन्थों की टीका रचने के अतिरिक्त मूलग्रन्थरचयिता भी हैं।
इनके वैयक्तिक जीवन के सम्बन्ध में विशेष जानकारी अप्राप्त है।
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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