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19 वर्ष
17 वर्ष
ये 'श्रुतकेवली' कहलाये। इसमें भद्रबाहु स्वामी अन्तिम श्रुतकेवली थे। दस पूर्वधारी आचार्य 1. विशाखाचार्य
10 वर्ष 2. प्रोष्ठिलाचार्य 3. क्षत्रियाचार्य
17 वर्ष 4. जयसेनाचार्य
21 वर्ष 5. नागसेनाचार्य
18 वर्ष 6. सिद्धार्थाचार्य 7. धृतिसेनाचार्य
18 वर्ष 8. विजयाचार्य 9. बृद्धिलिंगाचार्य 20 वर्ष 10. देवाचार्य
14 वर्ष 11. धर्मसेनाचार्य 16 वर्ष
183 वर्ष इसप्रकार 183 वर्षों में 11 आचार्य हुये, जो ग्यारह अंग और दस पूर्वधारी आगमवेत्ता थे। ये न तो केवली थे और न ही श्रुतकेवली, फिर भी ये आगमशास्त्रों के अधिकांश भाग के ज्ञाता थे।
__इनके पश्चात् ज्ञान का और ह्रास हो गया और 123 वर्षों में पाँच आचार्य केवल ग्यारह अंगों के ज्ञाता ही रह गये।
1. नक्षत्राचार्य 2. जनसालाचार्य
20 वर्ष 3. पाण्डवाचार्य
39 वर्ष 4. ध्रुवसेनाचार्य
14 वर्ष 5. कंसाचार्य
32 वर्ष
62 वर्ष स्मृतिक्षीणता एवं एकाग्रता की उत्तरोत्तर कमी के कारण ज्ञान का बराबर ह्रास होता गया और फिर दशांग, नवांग एवं अष्टम अंगधारी होते रहे। ऐसे आचार्यों में मात्र चार आचार्य हुये, जिनके नाम निम्नप्रकार हैं1. सुभद्राचार्य
6 वर्ष 2. यशोभद्राचार्य
18 वर्ष 3. आचार्य भद्रबाहु
23 वर्ष 4. लोहाचार्य
50 वर्ष 97 वर्ष
18 वर्ष
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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