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1950, पृष्ठ 474.
डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, जैन- समाज का वृहद् इतिहास, प्रथम खण्ड, प्रथम संस्करण, जैन इतिहास प्रकाशन संस्थान, जयपुर, 1992, पृष्ठ 4.
पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, जैनधर्म, पृष्ठ 26.
वही, पृष्ठ 39; एवं डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, जैन समाज का वृहद् इतिहास, प्रथमखण्ड, पृष्ठ 7.
पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, जैनधर्म, पृष्ठ 39-40.
डॉ. कस्तूरचन्द्र कासलीवाल, जैन- समाज का वृहद् इतिहास, प्रथम खण्ड, पृष्ठ 6. डॉ. बृजकिशोर शर्मा, पर्सपेक्टिपस ऑन मॉर्डन इकोनॉमिक एण्ड सोशल हिस्ट्री, पॉइन्टर पब्लिशर्स, जयपुर, 1999, पृष्ठ 220-229.
डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, राजस्थान के जैन सन्त : व्यक्तित्व एवं कृतित्व, जयपुर, 1990, पृष्ठ 6.
1971 की जनगणना रिपोर्ट से संकलित.
इस मन्दिर के आस-पास के आदिवासी भील - जनसंख्या बहुतायत से रहती है। वे इसकी पूजा 'कालाजी बापजी' के नाम से करते हैं। मूर्ति काले रंग के पत्थर की है। विस्तृत जानकारी हेतु देखें- - डॉ. बृजकिशोर शर्मा, पर्सपेक्टिअस ऑन मॉर्डन इकोनॉमिक एण्ड सोशल हिस्ट्री, पृष्ठ 59.
डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, जैन समाज का वृहद् इतिहास, खण्ड- एक, पृष्ठ 5-6. पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, जैनधर्म, पृष्ठ 43-44.
डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, जैन समाज का वृहद् इतिहास, खण्ड-एक, पृष्ठ 9.
वही.
इस संघ में 12,000 जैन - साधु सम्मिलित थे।
आर.एस. आयंगर स्टडीज इन साउथ इण्डियन जैनिज्म, मद्रास, 1922, पृष्ठ 105-106. विलास ए. सांगवे, पूर्वाक्त, पृष्ठ 14.
वही, पृष्ठ 15.
भारत की जनगणना रिपोर्ट 1981 से संगणित.
डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, जैनधर्म का वृहद् इतिहास, पृष्ठ 8.
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भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ