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स्वर्गीय रायबहादुर गौरीशंकर हीरानंद ओझा ने अपने 'राजपूताने के इतिहास' के प्रथम भाग में उल्लेख किया है कि अजमेर जिले के 'सार्श्व' नामक गाँव में वीर-संवत् 84 (विक्रमपूर्व 386, ईसापूर्व 443) का एक शिलालेख मिला है, जो अजमेर के म्यूजियम में सुरक्षित है। उस शिलालेख में यह अनुमान लगाया गया है कि अशोक के पहले भी राजस्थान में जैनधर्म का प्रसार हो चुका था। जैनियों की प्रसिद्ध जातियाँ, जैसे - ओसवाल, खण्डेलवाल, बघेरवाल, पल्लीवाल आदि का उदय-स्थान राजपूताना ही माना जाता है। चित्तौड़ के ऐतिहासिक कीर्ति-स्तम्भ जैनों का ही निर्माण कराया हुआ है। उदयपुर के समीप ऋषभदेव का मन्दिर, जिसे 'केसरियाजी' के नाम से भी जाना जाता है, जैनों का प्राचीन पवित्र स्थान है। जिसकी पूजा-वन्दना जैनों के अतिरिक्त अन्य-धर्मानुयायी भी करते हैं। राजस्थान में जैन देशी रियासतों में दीवान, मंत्री, सेनापति आदि भी रहे हैं। विशेषतौर पर मध्यकाल में जैनसमाज की प्रगति राजस्थान में अधिक दिखाई देती है। जैन-परम्परा के अनुसार मध्यकाल में जैनधर्म का उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल व अन्य सीधे मुस्लिम-शासन के अन्तर्गत जैनधर्म व समाज पतन की ओर अग्रसर हुआ। ___मुस्लिमकाल में प्रायः युद्ध हुआ करते थे, और इन युद्धों में हार-जीत के पश्चात् विजेता मुस्लिम-शासकों द्वारा मन्दिरों व मूर्तियों को लूटा व तोड़ा जाता था। यही नहीं, मूर्ति-भंजन के पश्चात् नगरवासियों को भी धर्म-परिवर्तन के लिये मजबूर किया जाता था, एवं सम्पत्ति की लूट-खसोट आम बात थी। अतिशयक्षेत्र केशवरायपाटन तथा ग्वालियर किले में विराजमान मूर्तियाँ इसके साक्षात् प्रमाण हैं। अजमेर का ढाई दिन का झोंपड़ा, वहाँ की प्रसिद्ध ख्वाजा साहब की दरगाह, पहले जैन-मन्दिर थे - ऐसी इतिहासकारों की भी मान्यता है। मुस्लिमकाल में कुछ अपवादों को छोड़कर शेष काल में मुस्लिम-शासन जैन-संस्कृति के लिये भी घातक साबित हुआ। जो कुछ बचा रहा अथवा निर्मित हुआ, वह या तो यहाँ के राजपूत-शासकों के रियासतों में अथवा युद्धों में फंसे रहने से उधर ध्यान नहीं जाने के कारण भी बहुत से मन्दिर बचे रहे।45 राजस्थान में मध्यकाल में जैनधर्म अत्यधिक सुरक्षित रहा। मध्यकाल के राजस्थान के अधिकांश दुर्गों में आज भी जैन-मन्दिर विद्यमान है। वैसे तो जैनधर्म के अनुयायी सम्पूर्ण भारत में हैं, किन्तु राजस्थान को प्रथम स्थान प्राप्त है।
राजस्थान के बाद मध्यप्रदेश (मध्यप्रान्त) जैन-मतानुयायियों की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में 'मुक्तागिरी', सागर जिले में दमोह के पास 'कुण्डलपुर' और निमाड़ जिले में 'सिद्धवरकूट' प्रसिद्ध जैन तीर्थ-स्थान है। 'भेलसा' (विदिशा) के समीप का बीसनगर (उदयगिरि) जैनियों का बहुत प्राचीन स्थान है। शीतलनाथ तीर्थंकर की जन्मभूमि होने से यह अतिशयक्षेत्र
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भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ