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ब्र. शीतलप्रसाद जी ने 'सराक-जाति' में दिगम्बर जैन-धर्म में उनकी आस्था बनाने के कार्य करने की प्रेरणा दी, जिसके कारण धर्म से विमुख हुई यह जाति, जो अन्य धर्म को अंगीकार कर सकती थी, उसे बचाकर दिगम्बर जैनधर्म में प्रवेश कराने के कार्य को प्रारम्भ कराया। आज यह प्रचार व्यापक रूप से चल रहा है व सफलता प्राप्त हो रही है। सराक जाति अधिकतर बिहार-प्रदेश में निवास करती है। दिगम्बर जैन-तीर्थक्षेत्र कमेटी को शक्तिशाली बनाने के लिये आचार्य समन्तभद्र जी की प्रेरणा महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। तीर्थों पर चले रहे विवादों के केस आज भी अदालतों में चल रहे हैं, जिनमें समाज को सफलता प्राप्त हो रही है। आज समाज अपने तीर्थों व मन्दिरों की रक्षा के लिये जागरुक है। दिगम्बर जैन-तीर्थों को कमेटी द्वारा आर्थिक सहयोग दिया जाता है। जैनधर्म का प्रमुख ग्रंथ 'धवला' का प्रकाशन सेठ शिताबराय लक्ष्मीचन्द जी जैन, विदिशा द्वारा प्रथम बार कराया। बहुत बड़ी संख्या में हस्तलिखित महत्त्वपूर्ण ग्रंथ अलमारियों में बन्द पड़े हुये हैं, उनके प्रकाशन के लिये प्रयास प्रारम्भ हुये, जिनमें आज सैकड़ों ग्रंथों का प्रकाशन हो चुका है। स्याद्वाद महाविद्यालय, वाराणसी, गणेशप्रसाद वर्णी विद्यालय, सागर, महाविद्यालय कारंजा (महा.) जैन गुरुकुल श्री हस्तिनापुर जी, मुरैना का प्रसिद्ध महाविद्यालय, महाराष्ट्र व कर्नाटक प्रदेशों में कई महत्त्वपूर्ण विद्यालयों, संस्कृत महाविद्यालय, जयपुर, ऐसे महत्त्वपूर्ण विद्यालय हुये, जिनके द्वारा समाज में अनेकों, उच्च-कोटि के विद्वान तैयार किये हैं। आज इस कार्य में टोडरमल स्मारक ट्रस्ट द्वारा भी विद्यालय चल रहा है, जहाँ अनेकों छात्रों को उच्च-कोटि के विद्वान् तैयार करते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य विद्यालयों में भी शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को विद्वान् बनाया जाता है। दिगम्बर जैन-समाज में महिला-परिषदों की स्थापना हुई है। अ.भा. संस्थाओं द्वारा महिला विभाग गठित कर उनके द्वारा व्यापक रूप से समाज में अग्रसर होकर कार्य कर रही हैं। समाज में रात्रि-भोजन का चलन नहीं था, समस्त समाज दिन में भोज करता था, जिसकी छाप इतर-समाजों पर पड़ी हुई थी। दुर्भाग्य से आज वह स्थिति नहीं है। रात्रि-भोजन सामूहिक रूप से हो रहे हैं, जो धर्म-विरुद्ध हैं। समाज को इस पर चिंतन कर दिन में ही सामूहिक भोजन करने की व्यवस्था करनी चाहिये। धनी वर्ग को विशेष ध्यान देना चाहिये। हमारा इस दिशा में साधु-समाज जल्दी सुधार ला सकते हैं।
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भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ