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प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से दिगम्बर जैन समाज का एक प्रतिनिधिमण्डल सामाजिक समस्याओं के निराकरण हेतु मई 4, 1976 को मिला, प्रतिनिधिमण्डल में साहू शांतिप्रसाद जी सेठ भागचन्द्र सोनी, सेठ राजकुमार सिंह कासलीवाल, श्री लक्ष्मीचन्द जी छाबड़ा, साहू श्रेयांस प्रसाद जी, श्री मिश्रीलाल गंगवाल एवं श्री अक्षयकुमार जैन आदि प्रमुख थे। प्रधानमंत्री से भेंट करके वापिस आने पर परस्पर सामाजिक चर्चाओं में श्री मिश्रीलाल जी गंगवाल ने साहू शांतिप्रसाद पर जोर डालकर कहा कि " आप महासमिति का गठन करें, हम सब आपके साथ हैं", कुछ आवश्यक विचार-विमर्श के बाद 'दिगम्बर जैन महासमिति' के गठन का निर्णय लिया गया, निर्णय पर उपस्थित महानुभावों ने हस्ताक्षर किये, उसके बाद जयपुर में अक्तूबर, 1976 में भगवान् महावीर के 2500वें निर्वाण - महोत्सव के समापन के आयोजित विशाल कार्यक्रम में जिसमें देश के सभी दिगम्बर जैन संस्थाओं के प्रमुख व्यक्ति सम्मिलित हुये, उन सबसे मिलकर 'दिगम्बर जैन महासमिति' का गठन किया तथा महासमिति के विधान को अंतिम रूप के लिये उपसमिति का गठन किया गया।
4 मई, 1976, की बैठक में हुये निर्णय के बाद समाज को तोड़ने, दूषित वातावरण बनाने वाले तत्त्वों ने अन्ततः सितम्बर माह में ही जिनवाणी का अनादर, जल-प्रवाह, जलाना आदि कार्य शुरू किये गये, जिससे सम्पूर्ण जैन- समाज चिंतित हुआ। तब खुरई (म.प्र.) के श्रीमंत सेठ ऋषभकुमार जी एवं कलकत्ता के सेठ श्री पन्नालाल एवं रतनलाल गंगवाल जी ने अपने सद्प्रयासों से दिगम्बर जैन समाज की अ.भा. संस्थाओं के पदाधिकारियों तथा अन्य प्रमुख महानुभावों की स्वीकृति प्राप्त कर एक सार्वजनिक अपील प्रकाशित की, जिसमें सभी ने इस कार्य को निदंनीय माना । आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज ने भी इस काण्ड का विरोध किया । भगवान् महावीर के 2500 वें निर्वाण महोत्सव के समापन समारोह, अक्तूबर, 1976, में जयपुर में साहू शांतिप्रसाद जी के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। उपस्थिति महानुभावों के हृदय में जिनवाणी के प्रति गहन पीड़ा थी। सभी ने अपने-अपने विचार व्यक्त कर इस कार्य की घोर निंदा की तथा भविष्य में ऐसे निंदनीय कार्य न हों, इसके लिये अपील की गई कि “जिनवाणी का प्रकाशन किसी संस्थान द्वारा हो, वह समस्त समाज के लिये पूजनीय है।” समय-समय पर दिगम्बर जैन- समाज पर आपत्तियाँ आती रहीं, जैसे मुनिराजों के विचरण व सुरक्षा पर, दिगम्बर जैन मन्दिरों की सम्पत्ति आदि पर सरकार का अधिकार इत्यादि अपने प्रयासों से निराकरण किया गया व दिगम्बर जैन तीर्थों पर अनधिकार कब्जा करने के प्रयास का भी समाज ने सामना किया।
साहू शांतिप्रसाद जी का निधन : सामाजिक घटनाक्रम में जैन-समाज का वज्रपात हुआ, कुशल एवं सम्मानीय नेता साहू शांतिप्रसादजी का स्वर्गवास हो गया।
भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ
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