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जबलपुर काण्ड : सन् 1958 में दिगम्बर जैन समाज को जबलपुर काण्ड ने चेतावनी दी कि ‘जागो और अपने अस्तित्व की रक्षा करो, अन्यथा मिट जाओगे । ' इस चेतावनी एवं काण्ड के फलस्वरूप अप्रैल 1959 में दिल्ली में सकल दिगम्बर जैन - समाज का अधिवेशन आयोजित किया गया, जिसमें महासभा, परिषद्, विद्वद्परिषद्, तीर्थक्षेत्र-कमेटी आदि संस्थाओं के सभी अग्रणीय महानुभावों एवं विद्वानों ने भाग लिया। सभी महानुभावों का हृदय जबलपुर काण्ड से दुःखी था, सभी की भावना थी कि समाज संगठित हो व तीर्थों की रक्षा की जाये एवं जैन एवं सरसेठ भागचन्द्र सोनी जी की अध्यक्षता में हुआ व स्वागताध्यक्ष स्व. लाला राजेन्द्र कुमार जैन जी थे। सभी की तीव्र भावना थी कि समाज की एकता को कायम रखकर ही अप्रिय घटनाओं का मुकाबला करें। महासभा के नियम नं. 9 को निकाल दिया जाये, परिषद् को समाप्त कर उसके सभी सदस्य महासभा में विलीन कर, केवल महासभा ही समस्त समाज का सामाजिक नेतृत्व करे, किन्तु समाज का दुर्भाग्य कि महासभा नियम नं. 9 को पृथक् करने को तैयार नहीं हुई। इसके नियमानुसार जैन उपजातियों में विवाह तथा विधवा के समर्थन करने वाले महासभा के सदस्य नहीं हो सकते थे। 'जबलपुर काण्ड' दिगम्बर जैन मन्दिरों की मूर्तियों को खण्डित करने पर हुआ था।
भगवान् महावीर के 2500 वें निर्वाण - महोत्सव मनाने का निर्णय : सन् 1969 में आ. भा. दिगम्बर जैन परिषद् ने आचार्य विद्यानंद जी मुनिराज के सान्निध्य में दिगम्बर जैन समाज की अखिल भारतीय संस्थाओं के प्रतिनिधियों का सम्मेलन सहारनपुर में बुलाया, जिसकी अध्यक्षता स्व. सेठ भागचन्द जी सोनी ने की । सम्मेलन में सभी संस्थाओं के प्रमुख महानुभावों एवं विद्वानों ने भाग लेकर निर्णय किया कि भगवान् महावीर का 2500वां निर्वाण महोत्सव समस्त दिगम्बर जैन- समाज मिलकर मनाये। इस निर्णय के आधार पर महोत्सव देश-भर में विशालरूप से मनाये गये, जिससे सम्पूर्ण समाज सुपरिचित ही है। इस महोत्सव से समाज की एकता, संगठन की शक्ति का परिचय भी प्राप्त हुआ ।
'दिगम्बर जैन महासमिति' के गठन का विचार : भगवान् महावीर के निर्वाण - महोत्सव पर अर्जित सामाजिक शक्ति, संगठन को बनाये रखने के विचार से दिल्ली में सन् 1975 में एक सम्मेलन बुलाया गया, जिसमें सभी संस्थाओं के प्रतिनिधि शामिल हुये। सभी की एक ही भावना थी कि जो समाज की एकता व संगठन की शक्ति बनी रहे, उसे बनाये रखा जाये। इसे रचनात्मक मोड़ देकर जीवित रखा जाये। यह भी सुझाव आया कि दिगम्बर जैन समाज की दोनों प्रमुख संस्थाओं - महासभा और परिषद् को मिलाकर 'दिगम्बर जैन महासमिति' का गठन महासभा व परिषद् संस्था के विलीन होने पर ही किया जाये। कुछ समय बाद यह स्पष्ट हुआ कि 'महासभा' अपना पृथक् अस्तित्व चाहती है, जिनके बाद महासमिति के गठन का विचार छोड़ दिया गया।
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भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ