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बाई है। बाल्यजीवन से ही निवृत्ति की ओर उनकी अभिरुचि रही । साधुओं की संगति उन्हें अच्छी लगती थी। 'उमेश' इनके घर का नाम था । संगीत में उनकी बहुत रुचि थी। सामान्य - शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् जयपुर (राजस्थान) में संस्कृत का उच्चअध्ययन किया। 17 मई सन् 1974 को आपने 'क्षुल्लक दीक्षा' आचार्य कुंथूसागर जी से प्राप्त की और एकाकी विहार करने लगे । आपका क्षुल्लक - जीवन कठोर तपस्या से युक्त रहा। अनेक उपसर्ग आते रहे, लेकिन कभी आपने असन्तोष प्रकट नहीं किया। इसी अवस्था में आचार्य विद्यासागर जी महाराज के सान्निध्य में आये। आचार्यश्री आपके जीवन से बड़े प्रसन्न रहे । क्षुल्लक - अवस्था में उनका नाम 'क्षुल्लक गुणसागर' रखा गया । 13 वर्ष पर्यन्त संघ में रहकर जैन-ग्रंथों का विशिष्ट अध्ययन करने के पश्चात् आपको आचार्यश्री सुमतिसागर जी ने 'मुनि दीक्षा' एवं 'उपाध्याय-पद' प्रदान किया।
उपाध्याय बनने के पश्चात् आप निरन्तर 10 वर्षों तक उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार एवं हरियाणा के विभिन्न गाँवों में विहार करके देश में अहिंसा, जैनधर्म का प्रचार कर रहे हैं।
निष्कर्ष
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि महावीर स्वामी की मृत्यु के पश्चात् जैनधर्म व समाज अनेक उतार-चढ़ावों से गुजरा है। जैनधर्म को धार्मिक क्षेत्र में निरन्तर आध्यात्मिक-नेतृत्व की आवश्यकता पड़ी। महावीर स्वामी के पश्चात् लगभग 700 वर्ष तक विभिन्न गणधरों व आचार्यों ने जैन समाज को सामाजिक, धार्मिक एवं दार्शनिक नेतृत्व प्रदान किया। मध्यकाल में दिगम्बर मुनियों व आचार्यों के अभाव के कारण जैन - संस्कृति के विघटन की चुनौती उत्पन्न हो गई थी। ऐसी नाजुक स्थिति में भट्टारक-संस्था का जन्म हुआ, जो 19वीं सदी के अन्त तक प्रभावशाली भूमिका निभाती रही। बीच में विक्रम संवत् का 17वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में भट्टारकों के विरुद्ध विद्रोह ने दिगम्बर जैन समाज को दो भागों क्रमशः 'बीसपंथी' व 'तेरापंथी' में विभाजित कर दिया। न्यूनाधिक रूप से 20वीं सदी में आज तक भट्टारक-संस्था विद्यमान अवश्य है, किन्तु प्रभावहीन हो चुकी है। 20वीं सदी को साधुओं, मुनियों व आचार्यों की सदी कहा जाये, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । 20वीं सदी दिगम्बर जैन समाज के उत्थान की सदी रही है। इस दौरान जैनधर्म, दर्शन व संस्कृति का अद्भुत विकास हुआ है। प्राचीन मन्दिरों का पुनरुद्धार, नये मन्दिरों का निर्माण, मूर्तियों की स्थापना, पंचकल्याणक महोत्सव आदि की अनवरत धारा प्रवाहित हो रही है। दिगम्बर जैन स -समाज के अनेक जागरुक संगठन, साहित्यकार, पत्रकार विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, साहित्यिक कृतियों आदि के द्वारा अपने समाज व धर्म के उत्थान में संलग्न हैं।
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भगवान् महावीर की परम्परा एवं समसामयिक सन्दर्भ