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अलबेली आम्रपाली ३४१
"देवि ! क्षमा करें । तथागत त्रिकालविद् भी हैं।"
"मैं इसे अस्वीकार नहीं करती। अनेक ज्योतिषी और नैमित्तिक भी त्रिकालज्ञानी होते हैं। अनेक ऐन्द्रजालिक मन की बात जान लेते हैं और लोगों को आश्चर्यान्वित करने वाले चमत्कार भी दिखाते हैं. इतने मात्र से वे पूजनीय नहीं हो जाते।"
माविका ने मन-ही-मन में सोचा' ''देवी के मन में तथागत के प्रति श्रद्धा के अंकुर अंकुरित नहीं किए जा सकते । वह मौन रही। __ और रथ आम्रकानन के पास पहुंच गया।
जितप्रभ सेठ का यह आम्रकानन अति भव्य और सुंदर माना जाता था। उद्यान के चारों ओर थूहर की मजबूत बाड़ थी। उद्यान में प्रवेश करने के लिए एक मजबूत काष्ठ-निर्मित द्वार था। उद्यान में सैकड़ों आम्रवृक्ष थे। उसमें पुष्पगुल्ल भी थे। लता-मंडपों की रचना भी थी। उद्यान के मध्य एक सुंदर भवन था। जितप्रभ सेठ ग्रीष्म ऋतु में अपने परिवार के साथ इसी उद्यान में रहते थे।
द्वार के पास रथ और अश्वारोही खड़े रह गए, क्योंकि चार बौद्ध भिक्षु द्वार बंद कर वहां खड़े थे। उनके साथ जितप्रभ सेठ के चार रक्षक भी खड़े थे।
सारथी ने कहा-"महाशय ! द्वार खोलो · देवी आम्रपाली आई है।" एक भिक्षु बोला-"भगवान् अभी किसी से नहीं मिलेंगे।"
देवी आम्रपाली और माध्विका-दोनों रथ से नीचे उतरीं । माध्यिका ने कहा-"महात्मन् ! देवी आम्रपाली भगवान् तथागत से मिलने आई हैं।" ___"भद्रे ! सूर्यास्त के पश्चात् स्त्रियों का भीतर आना निषिद्ध है । देवी को यदि दर्शन करने हों तो वे कल सूर्योदय के बाद आयें ।" दूसरे भिक्षु ने शांत भाव से कहा।
"मुझे अभी मिलना है। अभी क्यों नहीं मिला जा सकता?" आम्रपाली ने कहा।
"आप स्त्री हैं...।"
"तुम्हारे तथागत क्या स्त्री और पुरुष को समान नहीं मानते ?" बौद्ध भिक्षु कुछ चौंका। वह बोला-"आर्ये ! साधक के लिए स्त्री भयरूप होती है।"
"यह अभिप्राय किसका है ? अपनी प्रियतमा और कोमल फूल जैसे बालक को अर्धरात्रि में विश्वासघात कर चोर की तरह चले जाने वाले गौतम बुद्ध का है या आपका?"
"भद्रे ! प्रेम, करुणा और शान्ति की प्रतिमूर्ति हैं तथागत। आपने उनको कभी देखा नहीं है । यदि आपने उनको देखा होता तो ऐसा कभी नहीं कहतीं।"
"भिक्षु ! मेरे प्रश्न का यह उत्तर नहीं है । तुम द्वार खोलो, ''मैं इसी समय