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३४० अलबेली आम्रपाली
समझे ? सुन्दर और मनोहर कन्या मिली और उसे त्यागना पड़ा उसका क्या हुआ, यह भी आज तक ज्ञात नहीं हुआ है चार दिन पूर्व ही मैंने ऋषभदत्त चाचा को चंपानगरी भेजा था । पद्मा का विवाह हो चुका है तारिका मर चुकी है। सोलह वर्षों के बाद पुत्री से मिलने की आशा रखने वाली माता के हृदय में इससे कितनी व्यथा होती होगी ? ऐसा ही एक सुन्दर पुत्र प्राप्त हुआ । पुत्र के भावी सुख के लिए मैंने उसे राजगृही भेजा और वह मार्ग में ही तेरे तथागत के खप्पर में समा गया। ऐसे धूर्त्त तथागत के समक्ष एक चिरदुःखिनी माता क्या नहीं कर सकती ? संसार में किसी भी नारी को प्राप्त न होने जैसे स्वामी मुझे मिले । परन्तु वह दर्द तो मैं पी गई हूं नारी बहुत कुछ पचा सकती है संतान की इच्छा को वह नहीं पचा सकती । तू जिसे भगवान् कहती है, मैं आज गौतम बुद्ध को एक माता का हृदय खोलकर, बताने वाली हूं. मैं अपने पुत्र को वहां से ले आने वाली हूं।" इतना कहकर आम्रपाली ने एक निःश्वास छोड़ा ।
माविका स्थिर दृष्टि से आम्रपाली की ओर देख रही थी । आम्रपाली ने रथ के परदे में लगी जाली की ओर देखा । रथ अभी नगरी में ही चल रहा था। कुछ क्षण मौन रहकर वह बोली - "माधु! मैं समझती हूं कि तुझे आश्चर्य होता होगा कि असंख्य पुरुष जिसको महापुरुष मानते हैं, उसको मैं तनिक भी महत्त्व नहीं देती परन्तु वास्तव में मुझे गौतम बुद्ध में कोई विशेषता प्रतीत नहीं हुई ।"
"देवि ! आपको तथागत का पूरा परिचय नहीं है। उन्होंने अपनी नवयौवना पत्नी यशोधरा और बालक राहुल को, जैसे सांप केंचुली उतार फेंकता है वैसे ही, त्याग कर संन्यास ग्रहण किया है ।"
आम्रपाली ने हंसकर कहा--"यह बात मैं जानती हूं और इसीलिए तथागत के प्रति मेरे मन में कोई श्रद्धा नहीं है । परस्पर विश्वास से निर्मित ऐसे बंधनों को एक चोर की भांति तोड़ देना यह केवल कायरता ही नहीं, विश्वासघात भी है। गौतम यदि अपनी सुन्दर पत्नी को समझाते और फिर उसका त्याग करते तो वह पुरुषार्थं गिना जाता । प्रियतम के स्वप्न कल्लोल में सोयी हुई प्रियतमा को रात की चादर धारण करा कर छोड़ देना, क्या इसमें कोई महत्ता है ?"
माविका का हृदय कांप उठा ।
रथ नगरी के दक्षिण द्वार से बाहर निकला। माध्विका बोली - "देवि ! कुछेक पूर्वाग्रह मन को ।"
बीच में ही आम्रपाली ने कहा- "माधु ! मैं तेरी श्रद्धा को विचलित करने का प्रयत्न नहीं करना चाहती। मेरे में कोई पूर्वाग्रह नहीं है तूने तथागत का जो चित्र प्रस्तुत किया था उसी के प्रत्युत्तर में मैंने यह कहा है ।"