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३२८ अलबेली आम्रपाली
मुनीम उसे बार-बार चंपानगरी जाने के लिए कहता परन्तु सुदास भवन से बाहर निकलता ही नहीं था। अन्त में वह मुनीम को साथ ले अपने पांच- चार मित्रों के साथ चंपानगरी गया ।
अंगदेश की राजधानी चंपानगरी बहुत रंगीली थी। दूसरे शब्दों में कहें तो वह उपवन की नगरी थी। चंपानगरी के सैकड़ों उपवन पूर्व भारत के लिए आकर्षणरूप थे | चंपानगरी का निर्माणकार्य ही ऐसा था कि प्रत्येक भवन का अपना छोटा-सा उपवन अवश्य हो, प्रत्येक मोहल्ले में बड़ा उपवन हो और नगरी के बाह्य भाग में उपवनों की कतारें थीं, इसलिए चंपानगरी उपवनों की नगरी कहलाती थी ।
चंपानगरी में नर्तकियों, गणिकाओं और गायिकाओं की भी काफी प्रसिद्धि थी । विशेषतः वहां कामशास्त्र की शिक्षा देने वाले गणिकागृह भी अनेक थे । दूर-दूर के प्रवासी लोग यहां कामशास्त्र का अध्ययन करने के लिए आते थे।
सुदास को चंपानगरी पसन्द आ गई । व्यवसाय सम्बन्धी सारा कार्य मुनीम को सौंपकर स्वयं वह अपने मित्रों के साथ चंपानगरी भ्रमण करने निकल पड़ा ।
और एक दिन वह एक छोटे उपवन में एक सुन्दर कन्या को देख चौंक पड़ा। वह पद्मरानी थी । उसकी आंखें चमक उठीं । उसने पद्मरानी के विषय में बहुत कुछ जानकारी भी एकत्रित कर ली ।
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मनुष्य जब किसी बात को जानने के लिए प्राणपण से चेष्टा करता है तब सब कुछ जानकर ही सांस लेता है ।
सुदास को ज्ञात हुआ कि यह रूपसी कन्या एक विधवा की पुत्री है और इस रूपसी को पत्नी बनाने की भावना उसमें जागृत हुई ।
परन्तु बात कैसे की जाए ? यह जानने के लिए उसने वृद्ध मुनीम का सहारा लेना ही पसन्द किया । वृद्ध मुनीम इस बात से प्रसन्न हुआ। वह मानता था कि किसी भी उपाय से यदि सेठ बन्धन में बंध जाता है तो यौवन के दूषणों का अंत आ सकता है और सुदास किसी व्यवसाय में व्यस्त हो सकता है । वृद्ध मुनीम ने परमसुन्दरी की पालक - माता से ज्यों-त्यों सम्पर्क साधा |
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और इस सम्पर्क से सुदास का विवाह पद्मसुन्दरी के साथ हो गया ।
इस प्रकार पद्मसुन्दरी की परिचारिका तारिका एक बड़ी चिन्ता से मुक्त हो गई । उसको इस बात का सन्तोष था कि क्षत्रिय कुंडग्राम के एक धनकुबेर के साथ कन्या का विवाह होने से कन्या का जीवन सुखी बनेगा ।
अन्यान्य समस्याओं के समाधान के साथ-साथ जीवन की समस्या का भी समाधान हो गया ।