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अलबेली आम्रपाली ३२७
एकाकी पुत्र का जिस प्रकार लालन-पालन या संस्कार-दान होना चाहिए वैसा नहीं हो रहा था। ____सामान्य शिक्षा के पश्चात् जब वह सोलह वर्ष का हुआ तब उसे ऐसे ही रंगीले मित्र मिल गए । वह द्यूतक्रीड़ा, मौज-मस्ती, संगीत आदि में धान का व्यय बहुत करता । पिता को यह जंचता नहीं था। वे चाहते थे कि मेरा एकाकी पुत्र मेरी इज्जत और सम्मान को बनाए रखे और पूर्व भारत का महान् सार्थवाह बने ''परन्तु प्रत्येक पुत्र अपने पिता की इच्छा को पूर्ण नहीं कर सकता।
सुदास जब दस वर्ष का था तब माता का स्वर्गवास हो गया और जब वह अठारह वर्ष का हुआ तब पिता भी चल बसा।
अब सुदास प्रचुर सम्पत्ति का मालिक बन गया। उसे स्वर्ण और रत्नों से छलकता हुआ भण्डार प्राप्त हो गया।
वयोवृद्ध मुनीम ने व्यवसाय के विकास के लिए बार-बार प्रार्थना की किन्तु सुदास ने हंसकर एक ही उत्तर दिया-"चाचा ! आप मेरे लिए पूज्य हैं... आपकी बात को मैं सिर पर चढ़ाता हूं.'किन्तु आप तो जानते ही हैं कि पिताजी ने इतनी सम्पत्ति मेरे लिए छोड़ी है कि मुझे अब अपने लोभ का संवरण करना चाहिए । जो है, यदि उसका शतांश भाग भी मेरे उपभोग में आए तो भी बहुत है । आप और भांडागारिक मेरे बुजुर्ग हैं. आप दोनों आनन्दपूर्वक रहें और मेरे दोष की ओर अवश्य इंगित करें।"
सुदास की वाणी में मिठास था। पुन: एक बार मुनीम ने कहा- "भाई ! अब तुझे विवाह कर लेना चाहिए । स्त्री ही घर है, स्त्री ही शोभा है। और जब तक जीवन बंधता नहीं, तब तक वह चंचल बना रहता है।"
सुदास ने हंसकर कहा--"अभी तो मुझे अठारहवां वर्ष चल रहा है... पिताजी की मृत्यु अभी-अभी हुई है 'मैं विवाह से इनकार नहीं करता, किन्तु इस भवन का दायित्व जिस नारी को देना है, वह सामान्य नहीं होनी चाहिए।"
दो वर्ष और बीत गए।
सुदास यदा-कदा देवी आम्रपाली का नृत्य देखने जाता और आम्रपाली को देखने के पश्चात् उसके मन में यह लालसा जागृत हो गई कि इस श्रेष्ठ सुन्दरी को न भोगा जाए तो जीवन निरर्थक है। घर में पड़ा स्वर्ण और रत्न का ढेर मिट्टी के समान है।
परन्तु आम्रपाली के समक्ष उसने कुछ भी भेंट नहीं किया था और मन की भावना भी वह व्यक्त नहीं कर पाया था, क्योंकि आम्रपाली के तेन के समक्ष मन की भावना व्यक्त करने का साहस ही नहीं जुटा पा रहा था।
सुदास का बहुकीमती माल चंपानगरी के गोदामों में भरा पड़ा था । वृद्ध