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२५४ अलबेली आम्रपाली
बिबिसार बोला- "देवी आम्रपाली को यह पत्र हाथोंहाथ देना है और वे जो उत्तर लिखकर दें, उसे यहां लाना है। वहां पांथशाला में दामोदर रहेगा, तू उसे पत्र दे देना।"
संदेशवाहक पत्र लेकर चल पड़ा। दामोदर बोला-"श्रीमन् ! यदि आपके विषय में कोई पूछे तो क्या जवाब
"व्यवसाय के लिए अन्यत्र गए हैं, ऐसा कहना । परन्तु प्रत्येक सोमवार को मैं यहां आता रहूंगा।"
दामोदर कुछ भी समझ नहीं सका । अन्यत्र जाना और फिर प्रत्येक सोमवार को यहां आना, कैसे सम्भव हो सकता है ?
धनदत्त सेठ जयकीर्ति की प्रतीक्षा कर रहा था। नंदा भी आज पूजा-पाठ से शीघ्र निवृत्त होकर जयकीर्ति के आगमन की राह देख रही थी।
जयकीर्ति अपने सामान के साथ वहां पहुंच गया।
धनदत्त सेठ ने उसकी सारी सुविधाओं को ध्यान में रखकर अपने पास वाले खंड को तैयार कर रखा था।
धनदत्त ने उस खंड को दिखाते हुए जयकीर्ति से पूछा- "क्या यह कक्ष तुमको पसन्द है ?" ___ जयकीर्ति ने देखा, खंड अत्यन्त भव्य, स्वच्छ और सुन्दर था। उसने कहा"सेठजी ! मुझे केवल आपके वात्सल्य की भूख है''मुझे सब पसन्द है।"
एक सप्ताह बीत गया।
.. जयकीर्ति के आगमन से धनदत्त सेठ का व्यापार चमक उठा। बिंबिसार को व्यापार विषयक कोई अनुभव नहीं था । वह तो वीणावादक था 'धनुर्धर था. 'अश्वचालक था राजनीति का अभ्यासी था परन्तु परिस्थिति सब कुछ सिखा देती है।
धनदत्त की दुकान प्रसिद्ध हो गयी।
सोमवार के दिन जयकिति दामोदर से मिलने पांथशाला में गया । दामोदर ने कहा-"श्रीमन् ! इस सप्ताह में कामप्रभा की दासी बारह बार आपसे मिलने आ गयी । मैंने उसको, आपने जो कहा, वही बताया।"
"अब आए तब कह देना कि जयकीर्ति कब आएंगे कुछ कहा नहीं जा सकता। यहां आएंगे तब देवी से अवश्य मिलेंगे।" बिंबिसार ने कहा और दामोदर को पचास रौप्य मुद्राएं दीं।
धनदत्त सेठ के यहां रहते बिंबिसार को कुछ समय बीत चुका था। बिंबिसार का