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अलबेलो आम्रपाली २४५
इतने में ही प्रीतिमती ने खंड में प्रवेश कर कहा---'महादेवि ! उस विशिष्ट खंड में सारी व्यवस्थाएं कर दी गई हैं।"
"चलो, हम चलें।" कहकर कामप्रभा उठी और बिंबिसार के साथ उस विशिष्ट खंड में आई।
कामप्रभा ने संकेत से वाद्य कारों को आज्ञा दी। वाद्य बजने लगे।
वीणा, स्वरसप्त, काष्ठवाद्य, काष्ठतरंग, बंसरी, वेणु, चर्मवाद्य आदि वाद्यों से कल्याण की स्वरावली प्रारंभ हुई। ___ बिंबिसार स्वयं एक समर्थ वीणावादक थे । वे प्रत्येक राग को तरंगित करने में सिद्धहस्त थे। उनका वीणावादन अद्भुत और बेजोड़ था। परन्तु यहां वे वणिक् जयकीति बनकर आए थे, आचार्य जयकीर्ति बनकर नहीं।
वीणा पर कल्याण की स्वर लहरी थिरकने लगी 'किन्तु बिंबिसार के मन को कुछ खटक रहा था । वीणा का एकाध तार दुर्मेल दिखा रहा था। यह अन्य कोई श्रोता पकड़ नहीं सकता था।
कलाकार सब कुछ सहन कर सकता है, पर कला की विकृति सह नहीं सकता।
सभी प्रसन्न चित्त थे। केवल बिंबिसार का मन अकुलाहट अनुभव कर रहा था । एकाध घटिका बीतने पर बिंबिसार की अकुलाहट असह्य हो गई। उन्होंने वाद्यकारों के समक्ष हाथ जोड़ कर कहा-"आप क्षमा करें, अन्यथा न मानें। वीणा का मध्यम तार स्वर में नहीं है।"
"मध्यम तार...?" उज्जयिनी का समर्थ वीणावादक आर्य सुप्रभ आश्चर्यचकित रह गया।
कामप्रभा चौंकी। उसने मन-ही-मन सोचा, गांव का यह वणिक् कहीं परिहास तो नहीं कर रहा है ?
आर्य सुप्रभ ने तत्काल वीणा का मध्यम तार संभाला. परदेशी अतिथि की बात यथार्थ लगी । उसने अत्यन्त भावना भरे स्वरों में कहा-"श्रीमन् ! आपकी बात सही हैमात्र एक अंश का अन्तर रह गया। मुझे लगता है आप श्रीमान् का अनुभव।"
बीच में बिंबिसार ने कहा- "आचार्य, आप जैसा अनुभव तो है नहीं, मात्र सामान्य परिचय है।"
"सामान्य परिचय से इतना सूक्ष्म ज्ञान हो नहीं सकता।" कहकर आर्य सुप्रभ ने तार को ठीक करना चाहा । परन्तु प्रयत्न सफल नहीं हो सका। ___ कामप्रभा अत्यन्त आश्चर्य का अनुभव कर रही थी। वह अवाक् बनकर बिबिसार की ओर देखने लगी।