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अलबेली आम्रपाली २११
इधर देवी कादंबिनी एक प्रौढ़ रक्षक के साथ प्रवास करती करती चंपा नगरी के निकट पहुंच गई थी। वहां से चंपा मात्र दस कोश दूर थी !
कादंबिनी अपनी मुक्ति के प्रति आश्वस्त हो गई। उसने मन-ही-मन यह निश्चय किया था कि वैद्य राज आएं, तब तक चंपा में ही रुकना चाहिए। वह स्वयं चंपा की ही थी। उसका पालन-पोषण करने वाली माता वहीं वेश्यावृत्ति करती थी। इसलिए उसके लिए यह अनिवार्य हो गया था कि वह चंपानगरी में पुरुषवेश में ही रह सकेगी। यदि वैद्यराज उसे विषमुक्त नहीं कर पाएंगे तो वह राजगृह लौट जाएगी। इस प्रकार कादंबिनी ने मन-ही-मन निश्चय कर रखा था।
उसके साथ वाला रक्षक राजगृह का था । और देवी इस प्रकार चंपा में रहे, यह जानकर उसे आश्चर्य अवश्य हुआ । कादंबिनी ने उसके मन को पढ़ लिया और उसको यह समझाया कि जब तक महामंत्री की आज्ञा न आए तब तक चंपा नगरी में ही रहना है।
रक्षक प्रौढ़ था. 'लगभग पचास वर्ष का। उसका शरीर सशक्त था। चार दिन के सतत प्रवास से भी वह श्रमित नहीं हुआ था। किन्तु पुरुषवेशधारिणी कादंबिनी के सहवास से उसके मन में भोग की लिप्सा जाग गई थी।
यौवन सबको आकर्षित करता है युवा हो, वृद्ध हो या प्रौढ़ हो । सभी मादक यौवन को देखकर अपना भान भूल जाते हैं।
कितना मादक और खतरनाक होता है रूप और यौवन ! साठ-साठ हजार वर्ष तक तपस्या कर शरीर को जीर्णशीर्ण वना देने वाले विश्वामित्र भी देवी मेनका के रूप-यौवन में फंस गए । मेनका का सौन्दर्य उनके हृदय के दरवाजों को तोड़कर भीतर प्रविष्ट हो गया।
यह बेचारा रक्षक ! देवी कादंबिनी के रूप की मदिरा में इतना उन्मत्त हो गया कि उसके सहवास की योजना बनाने लग गया। ___ चंपा नगरी यहां से दस कोश दूर थी। अश्व भी श्रान्त हो गए थे। और कादंबिनी भी इस चतुर्दिवसीय निरंतर प्रवास से थककर चूर हो गई थी। ___ एक क्षद्र पल्ली थी। वहां रात बिताने का निश्चय किया। वहां एक छोटीसी पांथशाला भी थी। __ कादंबिनी के रक्षक ने अश्वों के लिए चारे-पानी की व्यवस्था की। उसने एक घर से रोटी और दूध भी ले लिया। कादंबिनी ने वैशाली से चलते समय कोई पाथेय नहीं लिया था।
पांथशाला का व्यवस्थापक एक वृद्ध व्यक्ति था। वह वहीं रहता था। उसने दो पुरानी चारपाई और दो गादी-तकिए भी उन्हें दे दिए थे।
पांथशाला मे दीपमालिका की कोई व्यवस्था नहीं थी। क्योंकि कभी-कभार