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२१० अलबेली आम्रपाली
४४. वासना की चिनगारी
वैशाली के रक्षक, चरनायक सुनंद तथा अन्यान्य रक्षाधिकारियों ने देवी कादंबिनी की खोज-पडताल के लिए चार दिन तक वैशाली और उसके आसपास के प्रदेश का चप्पा-चप्पा छान डाला । परन्तु कहीं भी, कुछ भी वृत्तान्त ज्ञात नहीं हो सका । देवी कादंबिनी का कुछ भी अता-पता नहीं मिला ।
जहां रूप होता है और रूप को भोगने की भूख होती है, वहां ऐसी घटनाएं घटित होती ही रहती हैं । किन्तु वैशाली में ऐसा कभी नहीं हुआ था । स्त्री और पुरुष प्रेम में बंधकर कहीं पलायन कर जाएं, यह संभव था । किन्तु इस प्रकार कोई नारी का अपहरण कर ले, यह अपूर्व घटना थी। इस घटना से वैशाली के गणतंत्रसंचालक लज्जा का अनुभव कर रहे थे ।
चरनायक ने लक्ष्मी से इस प्रसंग में अनेक प्रश्न किए । किन्तु लक्ष्मी विशेष कुछ भी नहीं बता सकी । उसने इतना सा कहा - " अपहरणकर्ता युवक थे । वे कभी देवी से मिलने आए हों, ऐसा संभव नहीं लगता । यह संभव है कि वे कभी देवी का नृत्य देखने आए हों ।"
चरनायक ने फिर पूछा - "देवी से मिलने और कौन-कौन आते थे ?"
"महाराज ! आज तक केवल पन्द्रह बीस व्यक्ति आए होंगे. कुछ दिन पूर्व राजकुमार जैसा एक व्यक्ति आया था और उसने देवी से प्रेम की भिक्षा मांगी थी ।"
"
"उनका नाम जानती हो ?"
"नहीं, महाराज !"
"तो क्या देवी ने कुमार की इच्छा पूरी की थी ?"
लक्ष्मी ने स्वाभाविक संकोच का अनुभव किया ।
...
चरनायक ने कहा - "कदाचित् ।"
"देवी मात्र आलिंगन ही देती थीं। वे मानती थीं कि नर्तकी को अपने शरीर का सौष्ठव बनाए रखना चाहिए। उसे कभी विषयतृप्ति का साधन नहीं बनना चाहिए ।" लक्ष्मी ने कहा ।
" बहुत अच्छा | क्या तुम देवी के संपर्क में आने वालों के कुछेक नाम बता सकती हो ?"
"कैसे बताऊं ? मिलने-जुलने के लिए आने वालों में कोई दूसरी बार आया हो, ऐसा मुझे नहीं लगता। क्योंकि देवी किसी की शारीरिक भूख किसी भी मूल्य पर मिटाने के पक्ष में नहीं थीं। फिर हम यहां से सर्वथा अपरिचित हैं । हम किसी को कैसे जान सकते हैं । "
चरनायक को कुछ भी रहस्य नहीं मिला ।