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अलबेली आम्रपाली १७७
उनका अभिवादन किया । सभी अपने-अपने आसन पर बैठ गए। ___ आचार्य इलावर्धन मृदंग का साथ देने के लिए बिंबिसार के दाहिनी ओर बैठ गए। बिंबिसार ने मन ही मन देवी वीणापाणि का स्मरण कर वीणा हाथ में ली। स्वरमेल प्रारम्भ किया । कुछ ही क्षणों में स्वरमेल सध गया। आचार्य इलावर्धन ने भी मृदंग का स्वरमेल किया।
___ आम्रपाली स्थिर नजरों से अपने प्राणाधिक प्रियतम की ओर देख रही थी। उसने मन ही मन सोचा, एक ही सप्ताह के भीतर प्रियतम को यहां से जाना पड़ेगा । प्रेम, रंग, मि, भावना, आनन्द, परिहास और जीवन का सौरभ चूरचूर हो जाएगा।
इन विचारों के कारण उसका चन्द्रानन मुरझा रहा था।
आज भी वह प्रफुल्ल नहीं थी। चिन्तारूपी निस्तेजता उसकी आंखों और वदन पर उभर रही थी। देखने पर लगता था कि आम्रपाली किसी रोग के कारण निस्तेज हो रही है। ___ नारी जब मां बनती है तब उसकी काया में एक तेज उभरता है । नये जीव के उदरस्थ होने पर काया का रंग निखर उठता है।
फिर भी आम्रपाली चिन्ता के कारण निस्तेज दीख रही थी। चिन्ता मनुष्य के तेज को लील जाती है । मृदंग का स्वरमेल हो गया।
आम्रपाली के वीणावादक आचार्य पद्मनाभ ने पूछा--"महाराज ! किस राग की आराधना करनी है ?"
बिंबिसार ने कहा- 'राग नहीं, आचार्य ! रागिनी के सामने तो देखें... देवी के नयनों में और वदन में चिन्ता उभरती-सी नजर आ रही है।"
सभी ने देवी की ओर देखा । ओह ! शतदल कमल जैसे वदन पर क्या हो रहा है ?
मृदंगवादक ने कहा--'देवी के चित्त को रागमोहिनी अवश्य ही प्रसन्न करेगी।"
बिबिसार बोले-"मैं चंद्रनंदिनी राग की आराधना करूंगा।" "चंद्रनंदिनी ?" आचार्य पद्मनाभ ने आश्चर्य के साथ पूछा।
"हां, आचार्य ! भगवती पार्वती के विषाद को दूर करने के लिए भगवान् शंकर ने चंद्रनंदिनी राग का निर्माण किया था। चंद्रनंदिनी के स्पर्श के बिना चंद्रानना का विषाद दूर नहीं हो सकता।" कहकर बिंबिसार ने आम्रपाली की ओर देखा । आम्रपाली कुछ भी नहीं बोली। उसके मन में यह भावना आ रही थी कि हृदय को झकझोरने वाली वियोग की वेदना भरी रागिनी यदि छेड़ी जाती है तो वह उत्तम है।