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१७० अलबेली आम्रपाली
तुमने जो त्याग और बलिदान किया है, उसी को उभार कर रखेगा। तुम्हारे प्रति मेरे मन में जो मान और श्रद्धा थी वह इस घटना से सहस्रगुना बढ़ी है।'
माविका ने गणनायक का पत्र आम्रपाली को दिया।
आम्रपाली और बिंबिसार ने वह पत्र पढ़ा । बिबिसार बोला-"प्रिये ! तेरे त्याग का यह यशोगान बन जाएगा।"
आम्रपाली की आंखों से आंसू टपक पड़े। वह सकरुण स्वर में बोली"त्याग का यशोगान ! लोगों को क्या पता कि संसार के सारे यशोगान अरमानों की राख पर ही लिखे जाते हैं।"
३६. शीलभद्र की ईर्ष्या रात्रि का प्रथम प्रहर समाप्त हो, उससे पूर्व ही अष्टकुल के गणश्रेष्ठ और आगेवान् व्यक्ति एक बार और गणनायक सिंह के भवन पर एकत्रित हो गए।
सिंह सेनापति ने सबका यथायोग्य स्वागत किया और अपने भवन के एक विशाल खंड में सबको बिठाया। ग्रीष्म ऋतु का उत्तरकाल चल रहा था। ऊष्मा का वातावरण था । पर गणनायक के खंड में वातायन के द्वारा पतन का निर्गमनआगमन हो रहा था। खंड कुछ शीतल हो रहा था।
सबके अन्त में कुमार शीलभद्र आया और गणनायक तथा अन्यान्य गण सदस्यों को प्रणाम कर अपने लिए निर्धारित आसन पर बैठ गया।
गणनायक ने कहा-"अब चर्चा प्रारंभ की जाए।"
कुमार शीलभद्र बोला-''महाराज ! आज सबसे महत्त्व की चर्चा है मगध के युवराज का. मैंने आज नगरवासियों से जो सुना है उससे लगता है कि इस प्रश्न का समाधान शीघ्र ही नहीं निकाला गया तो संभव है जनपदकल्याणी के गौरव की परवाह किए बिना ही लोग सप्तभूमि प्रासाद पर आक्रमण कर दें।"
गणनायक ने कहा- "कुमार ! आपका कथन यथार्थ है। मैं कल ही आम्रपाली और बिंबिसार से मिला था। मैंने उनके साथ विविध प्रकार से चर्चाएं की हैं । मैंने अपनी दृष्टि से युवराज को परखा है, परीक्षा की है । मुझे यह विश्वास हो गया कि बिबिसार इस षड्यंत्र से परे हैं। और वे इससे सर्वथा अजान हैं। युवराज कहते हैं कि वे कभी सप्तभूमि प्रासाद से बाहर नहीं निकले और न कोई बाहर का आदमी उनसे मिलने आया है। बिबिसार के इस कथन का समर्थन आम्रपाली करती है । वैशाली के राजपुरुषों की मौत का गुप्त चक्र चल रहा है। इसमें युवराज सर्वथा लिप्त नहीं हैं। मुझे इसका पूरा विश्वास है।"
शीलभद्र ने तत्काल आवेश में कहा-"श्रीमन् ! आपने बिंबिसार को सर्वथा निर्दोष माना है। इसका प्रमाण क्या है ?"
गणनायक बोले-“कुमारश्री ! अनुभव सबसे बड़ा प्रमाण होता है। दोषी