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१५८ अलबेली आम्रपाली
" पुत्रि ! ऐसे समर्थ वीणावादक को सभाक्षोभ होता ही नहीं । और इस गणतन्त्र के गण केवल वीणावादन ही सुनना नहीं चाहते.
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"तो ?"
" वे यह जानना चाहते हैं कि जनपदकल्याणी ने जिसे प्रियतम माना है वह पुरुष कैसा है ? वह कितना सुन्दर और आकर्षक होगा ? यह तमन्ना स्वाभाविक है। तू मेरा ही उदाहरण ले एक पिता ने अपनी कन्या के प्रियतम को अभी तक देखा ही नहीं। कोई मुझे पूछे तो मैं क्या जवाब दूं।"
आम्रपाली यह सब सुनकर चौंक उठीं ।
गणनायक कुछ पूछे, उससे पूर्व ही बिंबिसार उस कक्ष में आ पहुंचे। प्रियतम को उस कक्ष में आते देखते ही आम्रपाली का आनन चमक-दमक से भर गया ।
बिंबिसार को देखते ही सिंह सेनापति की आंखें चार हो गयीं । सुन्दर, बलिष्ठ, तेजोमय और यौवन की ऊर्मियों से भरा-पूरा शरीर । उसने सोचा, यह कौन होगा ? क्या आचार्य जयकीर्ति ? नहीं, नहीं, वह तो ब्राह्मण है और फिर ऐसी काया ब्राह्मण की हो नहीं सकती ।
fafaसार निकट आया और उसने हाथ जोड़कर गणनायक का अभिवादन किया ।
आम्रपाली अपने मन में उभरे भय को लज्जा के आवरण से छुपाती हुई बोली - "बापू ! आप जिसको याद कर रहे थे, वे..."
सिंहनायक ने वेधक दृष्टि से बिंबिसार की ओर देखकर कहा - "आचार्य ! आपको देखकर मेरे नयन तृप्त हो गए. मेरी कन्या ने जीवन साथी चुनने में अपनी बुद्धि का उचित नियोजन किया है ।"
बिबिसार ने प्रियतमा की ओर देखकर कहा - "महापुरुष का परिचय" आप वैशाली गणतन्त्र के महानायक सिंह सेनापति हैं "मेरे पितातुल्य हैं ।" आम्रपाली ने कहा ।
"मैं धन्य हुआ ।" बिंबिसार बोला ।
"आचार्य ! एकाध सप्ताह के पश्चात् जनसभा का आयोजन होगा। नियम ऐसा है कि जब गणसभा जुड़ती है तब पहले दिन जनपदकल्याणी के नृत्य-संगीत से कार्य प्रारम्भ होता है। अभी आम्रपाली नृत्य-संगीत नहीं कर सकेगी । इसलिए हम गणसभा का प्रारम्भ आपके वीणावादन से करना चाहते हैं ।"
" आपका कहना उचित है । पर मेरी कठिनाई है कि मैं जनता के समक्ष वीणावादन कर नहीं सकता ।" जयकीर्ति ने कहा ।
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"परन्तु कलाकार कभी जनता के समक्ष आने में भयभीत नहीं होता । आप कलाकार हैं, मालवीय है ।" कहकर गणनायक हंस पड़े ।
बिबिसार ने मन-ही-मन सोचा - "इस महापुरुष के समझ स्पष्टता हो जाए