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अलबेली आम्रपाली १५५
अलग नहीं रखता । तू देखती है, यह सदा मेरे हाथ में ही रहता है। केवल ध्यान काल में कुछ क्षणों के लिए मैं इसे अलग रखता हूं। सोते समय भी यह मेरे सिरहाने ही रखा रहता है।"
___ "आप महान हैं। कल का मुहूर्त टलने न पाए । सूर्योदय से चार घटिका के पश्चात् विवाह का मुहूर्त है। आप ध्यान रखें । आप विद्या की आराधना उससे पूर्व ही कर लें।" कन्या ने मीठी वाणी में कहा। ___ "ओह ! यह कैसा परिवर्तन । जो कन्या मुझे आंख की किरकिरी समझती थी, वह आज मेरी पत्नी बनने में अपना सौभाग्य मानती है।" राक्षस ने मन ही मन सोचा और अदृश्य होकर चला गया।
उसके चले जाने पर बिंबिसार ने अदृश्य गुटिका को मुंह से निकाला और कन्या से कहा-"राजकुमारी ! अब तुम निश्चिन्त रहो । मैंने सारी बातें सुन ली हैं। कल राक्षस का अन्तिम दिन है।"
राजकुमारी बहुत प्रसन्न हुई। बिंबिसार खण्डहर नगर को देखने चला गया।
दूसरे दिन।
निश्चित समय पर राक्षस विवाह की सारी तैयारी कर वहां आ पहुंचा। उसने राजकुमारी से कहा- "पाणिग्रहण से पूर्व मैं तेरा स्पर्श नहीं करूंगा। ये ले, बहुमूल्य रत्नजटित आभूषण और वस्त्रालंकर । अब मैं अपने इष्ट का स्मरण करता हूं । तू भी अपने इष्ट का स्मरण कर ले।"
बिंबिसार तयार था ही । वह अदृश्य था। ज्यों ही राक्षस खड्ग रखकर ध्यान करने बैठा । बिबिसार ने एक क्षण का भी विलम्ब किए बिना उस खड्ग को उठाकर उस राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया।
एक भयंकर आवाज!
उस राक्षस की निर्जीव काया वृक्ष की टूटी शाखा की भांति धरती पर पड़ी थी।
राजकुमारी आगे बढ़ी और बिबिसार के चरणों में लुढ़क गयी। उसने विवाह का प्रस्ताव रखा, पर बिंबिसार ने उसे समझा-बुझाकर, अस्वीकार कर दिया और उस राजकुमारी रजनीगंधा को उसके माता-पिता के पास पहुंचा दिया।
३४. वास्तविक परिचय बिबिसार को आम्रपाली से विदा हुए पांच दिन हो गए थे। वह मन ही मन सोच रही थी, आखेट खेलना जोखिम भरा कार्य है। न जाने किस ओर गए हैं ! काश,