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अलबेली आम्रपाली १५३
खोलना चाहा, पर वह नहीं खुला । उसने जोर से द्वार पर धक्का लगाया और वह खुल गया। ___ अरे ! यह क्या ? वह कक्ष के भीतरी दृश्य को देखकर चौंक पड़ा । उसने देखा-एक षोडशी कन्या एक विशाल पर्यक पर बैठी है । उसकी आंखें मुंदी हुई हैं। उसकी शारीरिक अवस्थिति से ऐसा लग रहा था कि वह ध्यान में लीन है। _ बिबिसार वहीं खड़ा रह गया। वह कुछ बोले, उससे पूर्व ही कन्या ने आंखें खोली और अपने सामने एक युवक को देखकर भयभीत हो गयी। उसने सोचा, हो न हो, यही राक्षस मुझे ठगने के लिए रूप-परिवर्तन कर आया है। वह भय से कांपने लगी। उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला । वह मौन थी।
बिबिसार बोला- "सुभगे ! भय को दूर करो। मैं भक्षक नहीं रक्षक हूं। तुम मेरी जिज्ञासा को शांत करो। यह कैसा जनशून्य राजभवन ! यह कैसी जनविहीन नगरी ? यहां बन्दी कन्यारत्न कैसी ?"
कन्या का मन शांत हुआ। वह बोली-"प्रियदर्शन ! आप पहले आसन ग्रहण करें । मैं संक्षेप में सारी बात बता देती हूं। मैं राजा कनकमणि की राजकन्या हूं। मेरा मूल नाम रजनीगंधा है। मेरे तीन भाई-बहन हैं । बचपन में मैं उनके चपेटा मार देती थी। इसलिए मेरा प्यार का नाम 'चपेटा दीदी' हो गया। मेरा रूप और लावण्य मेरे लिए अभिशाप बन गया। एक राजा मेरे रूप से आकृष्ट हो, मेरे साथ विवाह करना चाहता था। मैंने इनकार किया। उसने अपनी पैशाचिक करतूतों से सारे नगर-वासियों को भयभीत कर डाला। वे सभी घर. बार छोड़कर भाग गए। नगरवासियों के पलायन से चिंतित होकर मेरे पिताश्री ने अपने मित्र देव को याद किया । वह आया। पिताश्री ने कहा-'देवानुप्रिय, मुझे इस संकट से उबारो।' राजन् ! आक्रामक राजा के पास मेरे से अधिक शक्तिशाली देवों की शक्ति है। यदि आप अपनी सुरक्षा चाहते हैं तो अन्यत्र चले जाएं। मैं एक सुन्दर नगरी का निर्माण कर देता हूं । वहां उसकी पहुच नहीं होगी।' ___ 'मेरे पिताश्री ने देव की बात मान ली। उसने इस नगर का निर्माण किया। हम सब वहां सुख से रह रहे थे। पर एक बार एक राक्षस ने मेरे रूप और यौवन पर मुग्ध होकर कहा-'कन्ये ! मैं तुझे मानवीय सुखों से ऊपर उठाकर दैविक सुख प्रदान करूंगा । तू मेरे साथ विवाह कर ले।' ___'दुष्ट ! मैं तुझे फूटी आंख से भी देखना नहीं चाहती। विवाह की बात करते तुझे लज्जा नहीं आती ? कहां मैं और कहां तू ? कितना बीभत्स है तू ? चला जा, मेरी आंखों के सामने मत रह ।' ___ "उसने अट्टहास किया और मुझे मेरे कक्ष से उठाकर अपने नगर में यहां ला बन्दी बना दिया।