________________
अलबेली आम्रपाली १५१
पर गिर पड़ा। वह उठकर अपने बचाव के लिए दौड़े, इतने में ही हाथी वहां आ पहुंचा और उसे अपनी सूंड से ऊपर उछाला और ज्यों ही वह नीचे गिरा, हाथी ने उसे पैरों तले रौंद डाला। बेचारा वहीं ढेर हो गया।
इतने क्षणों में बिंबिसार बहुत आगे चला गया था । घटित घटना का उसे ज्ञान नहीं था। उसने अपनी वीणा सम्भाली।
संध्या हो गयी।
आगे बढ़ना सरल नहीं था। अंधकार बढ़ता गया। हाथी अन्यत्र चला गया। साथी बिछुड़ गया। वह अपने अश्व को एक ओर बांध, स्वयं एक वृक्ष के पास रात बिताने सो गया। सोते ही गहरी नींद आ गयी।
रात का समय । सूचीभेद्य अंधकार । सघन झाड़ियां । डरावना वन । इतने में ही जिस वृक्ष के नीचे बिबिसार सोया था, उसके कोटर से एक काला भुजंग निकला । वह मणिधर सर्प था। उसने मणि एक ओर रखी । सारा स्थल प्रकाशमय हो गया । भुजंग ने एक आदमी को सोते हुए देखा । वह निकट गया और उसके अंगूठे को डंक मारकर अन्य शिकार की खोज करने चला गया। अर्ध घटिका के बाद वह वहां आया और मणि को लेकर चला गया।
विषधर का विष तीव्र था। बिबिसार मूच्छित हो गया, मरा नहीं। सूर्योदय हुआ।
वन का गस्तीदल उधर से गुजरा । उसने बेहोश मानव को उठा पास में एक खण्डहर में रख दिया। वह पद्मावती देवी का मन्दिर था। प्रातःकाल के मन्द पवन की तरंगों से बिंबिसार को होश आया। उसने आंखें मलकर चारों ओर देखा। यह देखकर वह अवाक् रह गया कि उसका घोड़ा भी नहीं है और वह स्थान भी नहीं है, जहां वह सोया था। ___उसने सामने देखा । देवी की मूर्ति बहुत भव्य थी। ऐसा लग रहा था मानो उस मूर्ति के निर्माता ने अपनी सारी कला उसी में उडेल दी है। बिंबिसार अर्ध-घटिका तक उस मूर्ति को एकटक निहारता रहा । दृष्टि की एकग्रता बढ़ी और वह तदुरूप हो गया। उसका अध्यवसाय विशिष्ट हुआ।
प्रतिमा की भव्यता उसके नयनों में समा गयी थी। पदमावती देवी का वर्ण पीत था । कुर्कुट जाति का सर्प उसका वाहन था । उसके चार भुजाएं थी। बायीं दो भुजाओं में कमल और पाश थे और दायीं दो भुजाओं में फल और अंकुश थे। यह स्वरूप बिंबिसार के मन को भा गया। उसने एकाग्र मन से पद्मावती का ध्यान किया। फिर वीणावादन में तल्लीन हो गया। वीणा की मधुर ध्वनि की तरंगों से सारा प्रदेश तरंगित हो उठा। अर्ध घटिका बीत गयी।
इतने में ही एक आवाज आयी । बिंबिसार स्थिर बैठा था, मन शांत और