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अलबेली आम्रपाली १२६
कादंबिनी तथा अन्य किसी को यह पता नहीं था कि आज जो मेहमान आने वाला है, वह अन्य कोई नहीं परन्तु मगध का भावी सम्राट कुमार दुर्दम है।
महामन्त्री तत्काल कादंबिनी के भवन में गये और अपने आगमन की सूचना भेजी।
महामन्त्री कादंबिनी के खंड में गये। कादंबिनी ने उनका भावभरा स्वागत किया और वहां आने का प्रयोजन पूछा।
महामन्त्री बोले-"आज जो तुम से मिलने आने वाला है वह एक भयंकर शत्र है। वह कला का पुजारी नहीं, रूप का शत्रु है। तुझे आज पहली बार राजनीति की एक चाल चलनी है । आने वाला जीवित न लौटने पाए।"
"पुत्रि ! आने वाले को तुझे प्रसन्न करना होगा। बिना किसी अकुलाहट के तुझे उसको तड़पते देखना होगा। तेरी काया का विष आज अमृत हो जाएगा। मगध की एक जटिल पहेली तेरे हाथों सुलझ जाएगी। किन्तु वह कौन है, कहां से आया है, क्या करता है आदि को जानकारी तेरे लिए आवश्यक नहीं है। स्वतः यह सब कुछ तुझे समझ में आ जाएग।। निर्दयता, निश्चितता और निर्भयता-ये राजनीति के अमोघ शस्त्र हैं। तुझे इन शस्त्रों को सम्भालकर रखना है।"
कादंबिनी सब कुछ समझ गई। वह प्रसन्नचित्त होकर बोली-"आपकी आज्ञा के अनुसार ही सारा काम होगा।"
संध्या का समय । दुर्दम वेश परिवर्तन कर अपने साथी के साथ कादंबिनी के भवन पर आ पहुंचा।
महामन्त्री की सूचना के अनुसार कादंबिनी अपने अतिथि का स्वागत करने के लिए तैयार हो गयी। आज उसने अत्यन्त मुलायम और पारदर्शी कौशेय के वस्त्र धारण किए और वह उत्तम अलंकारों से सज्जित हुई । आज उसका रूप योगी को भी पथभ्रष्ट करने में समर्थ था।
कादंबिनी शिकार की प्रतीक्षा में बैठी थी। विचारों के आवर्त में वह फंस गई। उसका अतीत सामने आ गया।
इतने में ही राजकुमार दुर्दम अपने परिवर्तित वेश में वहां आ पहुंचा। ज्योंही वह भवन के द्वार पर आया, परिचारिकाओं ने उसका स्वागत किया और उसे कादंबिनी के एक विशेष खंड में ले गयीं और उसे सुनहरे आसन पर बिठाया। ___ उसने कादंबिनी को पहले देखा था, परन्तु कादंबिनी ने उसको कभी नहीं देखा था।
दुर्दम के नयन आनन्द से भरे-पूरे थे। उसके हृदय में मिलन की उग्र तमन्ना उभर रही थी।