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१२८ अलबेली आम्रपाली
वृद्धा के कथन से उसे कुछ आशा बंधी ।
दूसरे दिन भी दुर्दम नृत्य देखने गया । आज अभिसारिका नृत्य था । कादंबिनी ने उस नृत्य में इतना प्राण फूंका कि सभी दर्शक बेहाल हो गये ।
उस नृत्य ने दुर्दम के मन को और अधिक झकझोर डाला । वह उससे मिलने के लिए उतावला हो रहा था। उसने मित्र से अपनी उत्कंठा कही ।
मित्र ने पुनः वृद्ध दासी से सम्पर्क साधा ।
मित्र ने आकर कहा - "महाराज ! आप सौभाग्यशाली हैं। कल संध्या के समय आप देवी कादंबिनी से मिल सकेंगे ।"
यह सुनकर दुर्दम नाच उठा ।
पर उसे यह ज्ञात नहीं या कि कल की संध्या उसके लिए अन्तिम संध्या है । बेचारा !
उगता यौवन अधिक भयंकर होता है या अस्तंगत हुआ यौवन अधिक जोखिम भरा होता है, इसका निर्णय आज तक किसी मानसशास्त्री ने नहीं किया है । किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से यौवन का उदय-काल और अस्त-काल दोनों भयंकर और जोखिम भरे होते हैं ।
दुर्दम अभी सतरह वर्ष का था । यह काल ऐसा था कि वृत्तियों पर सहजता से नियंत्रण किया जा सकता है। किन्तु दुर्दम की बात निराली थी ।
इसमें सारा दोष मां त्रैलोक्यसुन्दरी का था । उसका एकाकी पुत्र दुर्दम उसके जीवन का मधुर स्वप्न जैसा था। वह उसे मगध का अधिपति बनाना चाहती थी और वह अपनी इस योजना में चरम बिन्दु का स्पर्श कर चुकी थी। किन्तु दुर्दम के सारे दुर्गुणों को वह पचा रही थी। जो कोई दुर्दम का दोष बताता, वह उसे गौण कर देती । यह सारा मोहवश हो रहा था ।
यही कारण था कि वह दुर्दम को न वीर बना सकी, न राजनीतिज्ञ और न रण- निपुण । वह यही समझती थी कि जब उत्तरदायित्व आएगा तब सब कुछ ठीक हो जाएगा ।
केवल सत्रह वर्ष की वय वाला दुर्दम साथियों की संगत से शराब और सुन्दरी के व्यसन में फंस गया । यौवन की उदयावस्था आदमी को अंधा बना देती है, यदि ऐसा भान न रहे तो धीरे-धीरे व्यक्ति गहरे गड्ढे में गिर पड़ता है और अपरिपक्व यौवन की तृप्ति भी भयंकर होती है ।
महामन्त्री के गुप्तचरों ने यह जान लिया था कि आज सायं दुर्दम कादंबिनी से मिलने वाला है। यह जानकर महामन्त्री का हृदय बहुत आनन्दित हो गया । वे चाहते थे कि दुर्दम इस प्रकार मौत का शिकार होता है तो त्रैलोक्यसुन्दरी की शासन-लालसा का स्वतः अंत हो जाता है और मगध साम्राज्य का बोझ एक दयनीय, उच्छृंखल और कमजोर हाथों में पड़ने से बच जाता है ।