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१२२ अलबेली आम्रपाली
आचार्य गम्भीर हो गए । मन-ही-मन गणित कर बोले- "महाराज ! आपका सारा जीवन-चित्र मेरी आंखों के सामने नाच रहा है । आप चातुर्मास के प्रारम्भिक दिनों में ही घर से निकल पड़े थे ?"
"हां..."
"गत मास आपके दो बड़े भाइयों की आकस्मिक मृत्यु हो गई है ।"
"महात्मन् ! आप यह क्या कर रहे हैं ?"
"महाराज ! यह मैं नहीं कह रहा हूं । गणित के आधार पर आपके भविष्य की जो घटना घटी है, उसी का कथन कर रहा हूं। इसीलिए अब मगध का सिंहासन आपका होगा, यह निश्चित बात है ।"
आम्रपाली यह सुनकर अत्यन्त हर्षित हुई ।
एक मास बीत गया ।
आम्रपाली के स्वास्थ्य में विचित्र परिवर्तन होने लगा । प्रातः काल उठते ही उसे पित्त से भरा-पूरा हल्का-सा वमन होता ।
मध्याह्न के समय उसे नींद आती ।
सुर्यास्त के बाद उसे भोजन करने की इच्छा ही नहीं होती। कभी कुछ मनोगत वस्तु खा लेती तो दो-चार घटिका के बाद वमन होता, खाया-पिया सारा निकल जाता ।
चार-पांच दिन तक आम्रपाली ने इन लक्षणों पर ध्यान नहीं दिया । अन्त में उसने अपने स्वामी बिंबिसार से कहा । बिंबिसार बोला - "प्रिये ! नैमित्तिक ने जो कहा है, क्या यह उसी का लक्षण तो नहीं है ? उदर में भावी ।"
आम्रपाली की आंखों में एक नयी चमक उभरी ।
दूसरे दिन उसने वैशाली की प्रसिद्ध गर्भ-ग्राहिका को बुलाया । उसने नाड़ीपरीक्षा की। आंख देखी । पेडू पर हाथ रखकर परीक्षा कर कहा - "देवि ! ये सारे लक्षण इस बात के द्योतक हैं कि आप गर्भवती हुई हैं आपको वमन होना स्वाभाविक है। पांचवें महीने के प्रारम्भ में या अन्त में वह स्वतः बन्द हो जाएगा ।"
माविका पास में खड़ी थी। उसने पूछा - ' देवी के पथ्यापथ्य के विषय
में...?"
"हां, इस विषय में सावधानी बरतनी होगी। तीसरे महीने के अन्त में नृत्य बन्द करना होगा. संगीत भी स्थगित करना पड़ेगा अभ्यंग और श्रमजनित कार्य का त्याग करना होगा ।"
फिर गर्भ-ग्राहिका ने आहार के विषय में सूचना दी।
आम्रपाली ने पूछा - "क्या किसी औषधि का सेवन करना पड़ेगा ?"