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अलबेली आम्रपाली १२१
प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर आम्रपाली और महाराज एक खंड में बैठे थे। उन्होंने माध्विका को स्वप्न पाठक को बुलाने भेजा था। वे प्रतीक्षारत थे।
इतने में ही माविका ने आकर कहा-"महाराज ! नैमित्तिक आचार्य गौतम पधारे हैं।"
"उनको आदरपूर्वक यहां ले आ।"
आचार्य गौतम की उम्र साठ वर्ष की थी। किन्तु उनका शरीर स्वस्थ और बलिष्ठ था. उनके नयन अत्यन्त तेजस्वी थे। उन्हें आते देख आम्रपाली और बिंबिसार दोनों उठे और आचार्य को नमस्कार कर उन्हें स्वर्ण आसन पर बिठाया। आचार्य ने आम्रपाली की ओर देखकर कहा- "बोल बेटी ! इस वृद्ध को क्यों याद किया है ?"
बिबिसार ने कहा-"महाराज ! देवी ने रात के अन्तिम प्रहर की अन्तिम घटिका में एक स्वप्न देखा था। उसकी फलश्रुति हम जानना चाहते हैं।"
आचार्य ने आम्रपाली से स्वप्न की सारी बात सुनी। दो क्षण आंखें बन्द कर कुछ गणना की। फिर आचार्य ने कहा-"देवि ! स्वप्न बहुत उत्तम है । चन्द्र जैसा तेजस्वी और उत्तरोत्तर प्रकाश करने वाले पुत्र की प्राप्ति होगी। परन्तु।" परन्तु कहते-कहते आचार्य गम्भीर विचार में उलझ गए।
बिंबिसार ने कहा- “महाराज ! बात बीच में कैसे रह गई ?"
"बालक का भविष्य बहुत अस्थिर है। एक ओर उसके लिए राजयोग है और दूसरी ओर संसार-त्याग का योग भी बनता है। श्रीमन् ! मैं आपका परिचय नहीं जानता, इसलिए।"
तत्काल आम्रपाली बोली-"ये मेरे स्वामी हैं। इनका नाम जयकीति है। ये समर्थ वीणावादक हैं।"
बिंबिसार ने प्रियतमा की ओर देखकर कहा-"प्रिये ! वैद्य और ज्योतिषी दोनों माता के समान होते हैं। इनके सामने सत्य कहने में नहीं हिचकना चाहिए।' फिर बिंबिसार ने आचार्य की ओर देखकर कहा-"महाराज ! मेरा नाम श्रेणिक है। महाबिंब वीणा मुझे अत्यन्त प्रिय है, इसलिए मुझे बिबिसार भी कहते हैं । मैं मगध सम्राट् प्रसेनजित का पुत्र हूं और राजाज्ञा से मगध का त्याग कर निकला हूं।" ___ "अच्छा, तब तो बालक के राजयोग की बात उचित लगती है 'महाराज ! दो वर्ष बाद आप...।"
बिंबिसार ने हंसते-हंसते कहा-"महात्मन् ! मेरे से पांच भाई बड़े हैं, इसलिए मुझे। यह अशक्य है । मेरे पिता के शताधिक पुत्र हैं । प्रथम दस बड़े पुत्र युवराज के रूप में माने जाते हैं, परन्तु गद्दी उसे ही मिलती है जो बड़ा होता है।"