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सभी सखियां उठ खड़ी हुई ।
वासरी बोली- 'अरे ! इतनी उतावल क्या है ? बैठो तो ?'
लखी तत्काल बोली - ' अरे ! हम तो पूरी रात यहां बैठने के लिए तैयार किन्तु इधर देख, तेरा बालम कितना उतावला हो रहा है।'
सभी सखियां अपने-अपने झोंपड़ों की ओर विदा हुई, वासरी उन सबको झापा तक पहुंचा कर लौट आई।
चांदनी के मीठे प्रकाश में वासरी और अधिक सुंदर दीख रही थी। सुदंत बोला-'अरे चल, अन्यथा बहुत विलम्ब हो जाएगा।'
'तुम बहुत अधीर हो। मेरी सखियां मुझे पींज डालेगीं' वासरी ने सुदंत के निकट आते हुए कहा।
'यह तो सबके साथ घटित होती है। लखी को क्या कम दबोचा था उसके पति ने ! अब चल, शीघ्रता कर।' तू 'कांटरखां' (विशेष वस्त्र) पहन ले । 'धनुष-बाण साथ में क्यों लिया है ?' वासरी ने पूछा ।
'हम आज जहां जाना चाहते हैं, वहां एक बाघ आया हुआ है साधन हो तो उसका उपयोग हो सकता है।
वासरी झोंपड़ी में गई
कुछ ही क्षणों पश्चात् 'कांटरखां' पहन कर बाहर आई और मधुर स्वर में बोली- 'कुछ ठहर कर चलें तो ?'
'क्यों बाघ से डर गई ?'
'तुम साथ में हो फिर मुझे किसका भय ? किन्तु बाहर के चौक में अनेक पुरुष बैठे हों तो ?
"
'तो क्या ? सभी को अपने-अपने बीते दिन याद आ जाएंगे कोई देख नहीं पाएगा। सभी मदिरा में मदमस्त हैं
जाएंगे।'
किन्तु हमें और हम दूसरी राह से
'क्या तुमने मदिरापान कर लिया
'तू ही मेरी मदिरा है' ।' कहकर सुदंत ने वासरी का हाथ पकड़ लिया । चांदनी रात की उस अमृत वेला में दोनों युवा हृदय झांपे को खोल कर बाहर आए। छोटी पगडंडी पर एक-दूसरे का हाथ थामे दोनों चल रहे थे। अचानक वासरी चौंकी और सुदंत से चिपट गई। सुदंत बोला- 'क्यों, क्या हुआ ?'
'सामने देखो तो सही '
सुदंत ने सामने देखा । एक भयंकर विषधर फन को ऊंचा उठाए पगडंडी के बीच बैठा हुआ फुफकार रहा था। वह केवल दस कदम दूर था।
पारधी नाग को नहीं मारते। वे नाग को देव मानते हैं। इसलिए सुदंत वासरी को अपने पीछे रखकर सावाधानी पूर्वक पगडंडी को पार कर लिया । और जब वे
पूर्वभव का अनुराग / २३