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वे मुनीम को अत्यावश्यक सूचनाएं दे एक रथ में बैठकर राजभवन की ओर चल दिए।
सेठजी को गए कुछ ही समय बीता था कि वहां सारसिका को लेकर रथ भवन के विशाल प्रांगण में आ खड़ा हुआ।
चिंतातुर सेठानी द्वार के पास ही खड़ी थी। सारसिका को रथ से उतरते देख सेठानी का मन कुछ शांत हुआ..... परन्तु यह कैसे? सारसिका अकेली क्यों? क्या तरंगलोला वहीं रुक गई? माता-पिता की आज्ञा के बिना वह कभी कहीं आती-जाती नहीं।
सारसिका निकट आई। सेठानी ने पूछा-'अरे! अकेली क्यों? तरंग तेरे वहां अकेली रुक गई?'
यह प्रश्न सुनते ही सारसिका समझ गई कि तरंगलोला लौटी नहीं है...... लगता है अपने प्रियतम के साथ चली गई। यदि यह बात फैलेगी तो नगरसेठ पर कलंक आयेगा और लोग अंगुली-निर्देश करेंगे तब नगरसेठ को शर्मिन्दा होना पड़ेगा...' अपना सिर झुकाए चलना होगा। वह गंभीर स्वरों में बोली-'आप मेरे साथ पुत्री के कक्ष में चलें..... वहां सारी बात बताऊंगी......"
एकान्त में बात... सेठानी को आश्चर्य हआ "वह मौनभाव से सारसिका के साथ ऊपरी मंजिल पर गई। सारसिका ने पूछा-'बापू! कहां हैं?'
'वे तो अभी-अभी राजभवन में गए हैं......" 'फिर कब लौटेंगे?'
यह कहा नहीं जा सकता। परन्तु तू ऐसे प्रश्न क्यों कर रही है? तरंगलोला कहां गई है?
'देखो मां! आपको धैर्य रखना होगा..... तरंगलोला कहां है? मैं जानती हं...... परन्तु उसका पता लगाने मुझे एक स्थान पर जाना होगा .... वहां से आने के बाद मैं आपको सारी बात बताऊंगी...... अन्यथा तरंगलोला को साथ लेकर आऊंगी' सारसिका ने कहा।
‘परन्तु वह है कहां?' 'यह ज्ञात करने के लिए ही तो मैं जा रही हैं।' 'चल, मैं भी तेरे साथ चलती हूं।'
'मां! प्रश्न विचित्र है। पहले मुझे जांच लेने दो...... फिर मैं आपको सारी बात बता दूंगी..." बात ऐसी है कि आप तथा बापू के सिवाय यह बात कोई जान न पाए...' यह कहकर सारसिका वहां से मुड़ी।
सेठानी अवाक् बनकर वहीं खड़ी रह गई.....यह सारा क्या है? तरंगलोला कहां है? यहीं है तो फिर सारसिका किसकी खोज करने जा रही है? कहां जा रही है? वह इतनी गंभीर क्यों दीख रही है? क्या बेटी को आपेक्षक १२८ / पूर्वभव का अनुराग