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2. वाष्कल
कहीं वाल्कल या वल्कल नाम भी मिलता है जो अशुद्ध प्रतीत होता है। सिद्धसेनगणी की तत्त्वार्थ टीका में वाष्कल नाम ही मिलता है। यही नाम शुद्ध लगता है। वाष्कल ऋग्वेद का महत्त्वपूर्ण चरण था। शाकलों और वाष्कलों का साथ-साथ उल्लेख भी देखा जाता है। 'चरण' एक प्रकार की शिक्षा संस्था थी जिसमें वेद की एक शाखा का अध्ययन शिष्य समुदाय करता था। उनमें एक शिष्य ने पाराशर्य शाखा का आरंभ किया। पाराशर्य लोगों की कोई स्वतंत्र शाखा या छंद ग्रंथ नहीं था इसलिये वे वाष्कल शाखा पर निर्भर थे। संभवत: अकलंक ने वाष्कल चरण के संस्थापक ऋषि का ही नाम अज्ञानवादियों में परिगणित किया है।64 3. कुथुमि
सामवेद की एक शाखा का नाम कुथुमि है। वायु पुराण में द्वैपायन से पूर्व के प्रत्येक द्वापर के अंत में होने वाले 27 व्यासों के नाम अंकित है।65 उनमें 19 वां व्यास भारद्वाज था। हिरण्यनाभ, कौसल्य, लोगाक्षि और कुथुमि भारद्वाज के समकालीन थे। लगता है, सामवेदाचार्य कुथुमि का ही निर्देश अज्ञानवादियों में किया है।66 4. सात्यमुनि
___ पाणिनि ने सामवेद के अन्य चरणों में शौचिवृक्षि और सात्यमुनि भी नाम दिये हैं। सामवेद की राणायनीय चरण की एक शाखा का नाम सत्यमुनि था। सत्यमुनि शाखावाले सन्ध्यक्षरों को ह्रस्व पढ़ते थे। अज्ञानवादियों की गणना में उनका ही नाम होना चाहिये।67 5. नारायण
नारायण के स्थान पर राणायन पाठ अधिक संगत लगता है, क्योंकि सिद्धसेनगणी की टीका में राणायन पाठ मुद्रित है। यह बुद्धि-दोष या लेखकों के प्रमाद के कारण राणायन का नारायन हो गया लगता है। 6. काठ
महाभारत में राजा उपरिचर वसु के यज्ञ का वर्णन है।68 वहां सोलह ऋत्विजों में एक नाम कठ का भी है। उसे ही आद्य कठ कहा गया है। अज्ञानवादी में उनका नाम ही हो सकता है। 7. माध्यन्दिन
शुक्ल यजुर्वेद की एक शाखा माध्यन्दिन है। संहिता के हस्तलिखित ग्रंथों में इस
क्रिया की दार्शनिक पृष्ठभूमि